झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार के खिलाफ एक बार फिर तीखा रुख अपनाते हुए बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि यदि झारखंड को कोयला रॉयल्टी के बकाया 1.36 लाख करोड़ रुपये नहीं मिलते हैं, तो राज्य सरकार कोयला आपूर्ति रोकने का फैसला भी ले सकती है। इस चेतावनी के साथ उन्होंने संकेत दिया कि अगर जरूरत पड़ी, तो झारखंड की कोयला खदानों को बंद कर दिया जाएगा, जिससे देशभर में बिजली संकट गहरा सकता है।
झारखंड कोयला उत्पादन का अहम केंद्र
देश के कुल कोयला उत्पादन में झारखंड की हिस्सेदारी महत्वपूर्ण है। यहां बीसीसीएल, सीसीएल और ईसीएल की खदानों से प्रतिदिन औसतन 3 लाख टन कोयला निकाला जाता है, जो सालाना लगभग 125 मिलियन टन हो जाता है। यह कोयला बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान समेत 12 राज्यों को आपूर्ति किया जाता है। एनटीपीसी और डीवीसी जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां भी झारखंड के कोयले पर निर्भर हैं। ऐसे में अगर राज्य सरकार कोयला खदानों को बंद करने का फैसला करती है, तो देश के कई हिस्सों में बिजली संकट उत्पन्न हो सकता है।
रॉयल्टी को लेकर केंद्र से टकराव
मुख्यमंत्री सोरेन का कहना है कि झारखंड को अपने संसाधनों का पूरा हक मिलना चाहिए, लेकिन केंद्र सरकार बकाया रॉयल्टी की रकम देने में टालमटोल कर रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार इस मुद्दे पर पीछे हटने वाली नहीं है और अगर केंद्र ने उनकी मांगों को गंभीरता से नहीं लिया, तो वे सख्त कदम उठाने से भी पीछे नहीं हटेंगे।
खाली पड़ी जमीन पर रैयतों का अधिकार
हेमंत सोरेन ने कोयला खनन से जुड़ी एक और अहम मांग उठाते हुए कहा कि खनन के बाद खाली पड़ी जमीन को रैयतों को वापस करना होगा। उन्होंने इस जमीन पर स्थानीय लोगों के अधिकार की वकालत करते हुए कहा कि यदि कंपनियां ऐसा नहीं करती हैं, तो राज्य सरकार जबरन यह अधिकार दिलाने के लिए कदम उठाएगी। उन्होंने लोगों से इस मुद्दे पर एकजुट होने का आह्वान भी किया।
मंईयां योजना पर भाजपा को घेरा
मुख्यमंत्री ने भाजपा पर भी निशाना साधते हुए कहा कि जब उनकी सरकार ने ‘मंईयां सम्मान योजना’ लागू की थी, तो भाजपा ने इसका मजाक उड़ाया था। लेकिन अब यही भाजपा दिल्ली और बिहार चुनाव में इस योजना की नकल कर रही है।
क्या झारखंड सरकार कोयला आपूर्ति रोक सकती है?
झारखंड सरकार के पास कोयला खदानों को बंद करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि अधिकांश खदानें केंद्र सरकार के नियंत्रण में आती हैं। हालांकि, राज्य सरकार यदि कोयला परिवहन या अन्य प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर सख्ती करती है, तो इससे कोयला आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। यदि झारखंड अपने इस फैसले पर अडिग रहता है, तो केंद्र और राज्य सरकार के बीच यह टकराव और गहरा सकता है, जिसका असर देशभर के बिजली उत्पादन पर पड़ सकता है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि केंद्र सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है और क्या झारखंड को उसकी बकाया रॉयल्टी मिलती है या नहीं।