रांची: झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की द्वितीय सिविल सेवा भर्ती घोटाले में फंसे अधिकारियों की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं। सीबीआई की विशेष अदालत इस मामले में दाखिल चार्जशीट पर संज्ञान लेने की तैयारी में है। आगामी 17 फरवरी को इस पर सुनवाई होगी, जिसमें अदालत महत्वपूर्ण फैसला ले सकती है।
सूत्रों के अनुसार, अदालत ने इस मामले के अनुसंधान पदाधिकारी को निर्देश दिया है कि वे चार्जशीट में शामिल आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अभियोजन स्वीकृति आदेश प्रस्तुत करें। यदि सीबीआई यह आदेश समय पर नहीं ला पाती, तो अदालत स्वयं संज्ञान लेकर आगे की कार्रवाई कर सकती है, जैसा कि पहले जेपीएससी प्रथम सिविल सेवा भर्ती घोटाले में किया गया था।
सीबीआई ने इस घोटाले की जांच के दौरान कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। आरोप है कि परीक्षा प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं की गई थीं। जांच में सामने आया कि परीक्षार्थियों के अंकों में मनमाने तरीके से बढ़ोतरी की गई, कॉपियों में कांट-छांट कर नंबर बढ़ाए गए, और साक्षात्कार में मिले वास्तविक अंकों को बढ़ाकर कुछ उम्मीदवारों को अनुचित लाभ दिया गया। गुजरात स्थित फॉरेंसिक लैब में जांच के बाद इन गड़बड़ियों की पुष्टि हुई है।
पिछले साल अक्टूबर में सीबीआई ने इस मामले में 60 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी, जिनमें 28 अधिकारी शामिल हैं। इनमें से कई अधिकारी अब प्रमोशन पाकर महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं। इनमें तत्कालीन जेपीएससी अध्यक्ष दिलीप प्रसाद और कई अन्य महत्वपूर्ण अधिकारी शामिल हैं।
गौरतलब है कि नए बीएनएसएस (BNS) कानून के तहत अब भ्रष्टाचार के मामलों में अभियोजन स्वीकृति आदेश के बिना भी अदालत 120 दिनों के भीतर संज्ञान ले सकती है। इससे पहले राष्ट्रीय खेल घोटाले और जेपीएससी प्रथम सिविल सेवा भर्ती घोटाले में भी इसी नियम के तहत कार्रवाई की गई थी।
जेपीएससी-2 घोटाले में अदालत का फैसला महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि इससे राज्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को नई दिशा मिल सकती है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि 17 फरवरी को अदालत इस मामले में क्या रुख अपनाती है और भ्रष्ट अधिकारियों पर क्या कार्रवाई होती है।