स्वतंत्र थिंक टैंक सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर 2024 में दिल्ली भारत का सबसे प्रदूषित शहर बन गया है। राजधानी दिल्ली और एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) के अधिकांश इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) गंभीर श्रेणी में पहुंच गया है, जिससे यहां के निवासियों को स्वास्थ्य संबंधी गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है।
बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण का मुख्य कारण वाहन उत्सर्जन, उद्योगों से निकलने वाला धुआं, निर्माण कार्यों से उड़ने वाली धूल और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने का धुआं है। हर साल सर्दियों में पराली जलाने के कारण दिल्ली में स्मॉग की समस्या बढ़ जाती है। इस साल भी अक्टूबर से ही वायु गुणवत्ता में गिरावट देखी जा रही है, और त्योहारों के दौरान पटाखों के जलने से यह स्थिति और गंभीर हो गई।
AQI गंभीर श्रेणी में, स्वास्थ्य पर असर
दिल्ली और एनसीआर के अधिकांश क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 300 से 400 के बीच दर्ज किया गया है, जो कि गंभीर श्रेणी में आता है। ऐसी स्थिति में हवा में हानिकारक कणों का स्तर बहुत अधिक हो जाता है, जिससे सांस की बीमारियों, फेफड़ों के संक्रमण, और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यह स्थिति बुजुर्गों, बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष रूप से खतरनाक है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम
दिल्ली सरकार ने इस गंभीर स्थिति को देखते हुए कई आपातकालीन कदम उठाए हैं। प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए जल छिड़काव, एंटी-स्मॉग गन का प्रयोग, सड़कों पर नियमित सफाई और निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। इसके साथ ही ग्रैप (ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान) को भी लागू किया गया है, जिसके तहत प्रदूषण स्तर को देखते हुए कड़े नियमों का पालन किया जा रहा है।
प्रदूषण को कम करने के लिए सुझाव
विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली के निवासियों को स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए घर के अंदर ही रहना चाहिए और बाहर निकलने पर एन95 मास्क का प्रयोग करना चाहिए। साथ ही, एयर प्यूरिफायर का उपयोग भी हवा को स्वच्छ बनाए रखने में सहायक हो सकता है। सरकार को सख्त प्रदूषण नियंत्रण कानून बनाने और पराली जलाने के स्थायी समाधान पर काम करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
दिल्ली में प्रदूषण का यह बढ़ता स्तर स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है और इसके समाधान के लिए दीर्घकालिक योजनाओं की आवश्यकता है। अगर जल्द ही कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो यह समस्या आने वाले समय में और भी गंभीर रूप ले सकती है, जिससे न केवल पर्यावरण बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर भी भारी प्रभाव पड़ सकता है।