सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 8 नवंबर को एक ऐतिहासिक फैसले में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखने का आदेश दिया है। कोर्ट ने इस महत्वपूर्ण मामले पर 4-3 के बहुमत से निर्णय सुनाया, जिसमें 4 जजों ने AMU को अल्पसंख्यक दर्जा देने के पक्ष में फैसला दिया, जबकि 3 जजों ने असहमति जताई।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ और जस्टिस जे.बी. पारदीवाला ने इस निर्णय पर सहमति जताई, जबकि जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने इस पर अलग राय व्यक्त की। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अल्पसंख्यक दर्जे को बनाए रखते हुए शैक्षणिक संस्थानों को नियमन का अधिकार है, और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इन संस्थानों का धर्मनिरपेक्ष चरित्र सुरक्षित रहे।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि “अल्पसंख्यक समुदायों को अपनी शैक्षिक और सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने का अधिकार है, और इस अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।” उन्होंने यह भी कहा कि “अल्पसंख्यक दर्जे के लिए मानदंडों को स्पष्ट करना महत्वपूर्ण है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी संस्थान के अल्पसंख्यक चरित्र का हनन न हो।”
यह मामला उस समय उठा था जब 2019 में केंद्र सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा देने के खिलाफ एक याचिका दायर की थी, जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। AMU, जो एक ऐतिहासिक मुस्लिम शैक्षिक संस्थान है, को 1965 में अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त हुआ था।
इस फैसले के बाद, AMU के प्रबंधन और उसके छात्रों में राहत की लहर है, क्योंकि यह निर्णय संस्था के सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित करता है।
यह निर्णय न केवल AMU के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भारत के शिक्षा क्षेत्र में अल्पसंख्यक अधिकारों की व्याख्या और सुरक्षा के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।