पटना, 06 जनवरी 2025: डाक विभाग की ऐतिहासिक धरोहर और गौरवशाली विरासत को अविस्मरणीय करने के उद्देश्य से आज बिहार के चीफ पोस्टमास्टर जनरल, श्री अनिल कुमार द्वारा पटना जीपीओ प्रांगण में हरकारा, कबूतर पोस्ट की प्रतिकृति और सेल्फी प्वाइंट का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर श्री अनिल कुमार ने हरकारा और कबूतर पोस्ट की डाक विभाग में ऐतिहासिक भूमिका पर विस्तार से चर्चा की।
उद्घाटन समारोह में मीडिया को संबोधित करते हुए श्री अनिल कुमार ने कहा, ‘हरकारा डाक विभाग की सन्देश-प्रेषण प्रणाली का मुख्य आधार स्तम्भ था जो पैदल ही देश के कोने-कोने में सन्देश पहुंचाने का कार्य करता था l इनकी मेहनत और समर्पण ने आधुनिक डाक व्यवस्था का आधार तैयार किया । उन्होंने बताया कि हरकारा न केवल डाक विभाग का सन्देश-प्रेषण प्रणाली का प्रतीक पुरुष था, बल्कि उनकी विरासत हमें मानवीय सन्देश-संप्रेषण की शक्ति के रूप में प्रेरित करती है ।
हरकारा का इतिहास वैदिक काल से प्रारंभ होकर मौर्य साम्राज्य काल (322 -185 BC) होते हुए मुग़ल एम्पायर (1526-1756 CE) के साथ ही ब्रिटिश कोलोनियल एरा (1500-1947 CE) और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के समयकाल को रेखांकित और गौरवान्वित करता है | उन्होंने यह भी कहा की, हरकारा भारत में डाक व्यवस्था के अहम् हिस्से थे, जो पैदल सन्देश पहुंचाते थे | इनकी पहचान घुँघरू बंधा हुआ भाला तथा पैरों में बंधे हुए कपड़े हुआ करते थे| वस्तुतः, हरकारा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द “हर” से हुई है जिसका अर्थ है “धावक” और “कारा” का अर्थ है “संदेहवाहक” |
वैदिक काल के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में सन्देश, सामान और समाचार लाने-ले जाने के लिए राज दरबारों और व्यापारियों द्वारा हरकारों को नियुक्त किया जाता था। मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) ने एक सुव्यवस्थित डाक प्रणाली की स्थापना की, जिसमें हरकारों ने संदेशों और दस्तावेजों को प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शेरशाह सूरी के शासन काल में हरकारों के लिए एक सुव्यवस्थित तंत्र का व्यवस्था किया गया, जिसके तहत ग्रैंड ट्रंक रोड पर सरायों का निर्माण कराया गया, जहाँ हरकारे यात्रा के दौरान विश्राम किया करते थे | यही सराय समय बीतने के साथ डाकबंगला के नाम से प्रसिद्ध हुए | मुगल साम्राज्य (1526-1756 ई.) के दौरान, हरकारे पूरे साम्राज्य में शाही संदेश, कर और श्रधांजलि ले जाने के लिए जिम्मेदार थे। मेवाड़ और मारवाड़ जैसे राजपूत साम्राज्यों में, हरकारा “दूत और जासूस” के रूप में कार्य करते थे, जो शासकों को महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते थे। ब्रिटिश औपनिवेशिक काल (1500-1947 ई.) में भारतीय डाक सेवा को 1854 ई. में औपचारिक रूप दिया गया था, जिसमें हरकारों को “डाक-धावकों” के रूप में सेवा में शामिल किया गया था।
अंग्रेजी शासन के दौरान, डाक व्यवस्था में ट्रेन और टेलीग्राफ के आगमन के साथ अभूतपूर्व बदलाव आए और हरकारों की भूमिका सीमित होती गई | तथापि, हरकारे ने भारत में संचार क्रांति में अहम् भूमिका निभाई | वे कष्टदायी मौसम, तूफ़ान, गरज के साथ चमकते बिजली और बारिश, खून को उबालने वाली प्रचंड गर्मी, मज्जा को जमा देने वाली हिमालय की अत्यधिक ठण्ड, जैसे कई असाधारण बाधाओं के बावजूद, विविध और विशाल भारत में अथक और निरंतर रूप से डाक पहुंचाते थे |
कबूतर पोस्ट की बात करते हुए उन्होंने कहा कि, “कबूतर संदेशवाहक के रूप में इतिहास में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। डाक विभाग ने भी युद्धकाल और कठिन परिस्थितियों में कबूतरों के माध्यम से संदेशों का आदान-प्रदान किया। यह प्रतिकृति हमें याद दिलाती है कि सूचना और संचार में अभूतपूर्व संभावनाएँ अन्तर्निहित हैं ।’ श्री कुमार ने यह भी बताया की डाक विभाग की प्रगति का एक जीवंत उदहारण यह भी है कि हम कबूतर से प्रारंभ कर अब ड्रोन से डाक को वितरित कर रहे हैं l पूर्वकाल में कबूतरों के अद्भुत प्राकृतिक क्षमताओं के कारण उनका उपयोग संदेशों के आदान – प्रदान में किया जाता था | कबूतरों के माध्यम से संदेशों के आदान – प्रदान की इस पद्धति को “कबूतर – पोस्ट” कहा जाता था | 2500 ईसा पूर्व के आसपास प्राचीन मिस्र में कबूतरों को दूत के रूप में इस्तेमाल किये जाने के प्रमाण हैं | प्राचीन ग्रीस और बाद में प्राचीन रोम में ओलंपिक खेलों के दौरान संदेश ले जाने के लिए कबूतरों का उपयोग किया जाता था। प्राचीन चीन में भी हान राजवंश के दौरान सैन्य संचार के लिए कबूतर पोस्ट के उपयोग का प्रमाण मिलता है ।
मध्य युग के दौरान अरब प्रायद्वीप में कबूतर पोस्ट का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता था | पहली आधुनिक कबूतर डाक प्रणाली 1818 ई. में बेल्जियम में स्थापित की गई थी | फ्रांसीसियों ने फ्रेंको-प्रशिया युद्ध(1870-1871 ई.) के दौरान कबूतर पोस्ट प्रणाली को अपनाया था | कबूतर पोस्ट का उपयोग अमेरिकी गृहयुद्ध (1861-1865 ई.) के दौरान और बाद में व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए भी किया गया था। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान कबूतरों का उपयोग संदेशों को मुख्यालयों एवं अन्य बेसों तक पहुँचाने के लिए किया जाता था, जिनकी दूरी 100 मील तक हुआ करती थी | 1915 ई. में पश्चिमी मोर्चे पर दो कबूतर कोर की स्थापना की गई, जिसमें 15 कबूतर स्टेशन शामिल थे, जिनमें से प्रत्येक में चार (4) पक्षी थे और एक हैंडलर था | कबूतर दल में अतिरिक्त कबूतरों की भर्ती की गई और सेवा का काफी विस्तार हुआ | युद्ध के अंत तक कबूतर दल में 150 मोबाइल मचानों में 400 आदमी और 22,000 कबूतर शामिल थे, जिसे कबूतर पोस्ट के चरम विकास का कालखण्ड माना जाता है | कालांतर में सन्देश प्रेषण व्यवस्था उत्तरोत्तर विकास करते हुए आधुनिक डाक प्रेषण के स्वरुप को प्राप्त किया |
हरकारा और कबूतर पोस्ट पर आधारित इन प्रतिकृतियों को खासतौर पर डाक विभाग के गौरवशाली अतीत की संजोने और नई पीढी को इसकी जानकारी देने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। सेल्फी प्वाइंट का भी उद्घाटन किया गया, जी डाक विभाग की धरोहर को युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाने की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास है l
इस मौके पर श्री ए आई हैदरी, महाप्रबंधक (वित्त); श्री पवन कुमार, डाक निदेशक (मुख्यालय);, श्री रंजय कुमार सिंह, मुख्य डाकपाल, पटना जीपीओ के साथ डाक विभाग के कई वरिष्ठ अधिकारियों, कर्मचारियों, मीडिया बंधुओ और आम नागरिकों की गरिमामयी उपस्थिति रही l सभी ने इन प्रतिकृतियों और सेल्फी प्वाइंट की भव्यता की सराहना की। यह प्रयास डाक विभाग की ऐतिहासिकता और इसके योगदान को जन-जन तक पहुंचाने में सहायक होगा।