रांची: झारखंड की राजनीति के दिल यानी कांके रोड पर स्थित ऐतिहासिक मुख्यमंत्री आवास को आखिरकार ज़मींदोज कर दिया गया। एक ऐसा बंगला, जो कभी सत्ता का प्रतीक था, अब मलबे में तब्दील हो चुका है। ‘कैफोर्ड हाउस’ नामक यह भवन न सिर्फ झारखंड की सत्ता का केंद्र था, बल्कि राजनीतिक चर्चाओं और अंधविश्वासों का भी हिस्सा रहा। वर्षों से इसे ‘मनहूस बंगला’ करार दिया जाता रहा, क्योंकि यहां रहने वाले कई मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल अधूरा रह गया।

कैफोर्ड हाउस: इतिहास और ‘मनहूस’ की छाया

ब्रिटिश काल में बना यह भवन झारखंड के गठन के बाद मुख्यमंत्री निवास बना। बाबूलाल मरांडी से लेकर हेमंत सोरेन तक, कई मुख्यमंत्रियों ने इसमें कदम रखा, लेकिन कहा जाता है कि कोई भी लंबे समय तक इस आवास में टिक नहीं सका। राजनीतिक गलियारों में यह धारणा बन गई कि यह बंगला अशुभ है। धीरे-धीरे यह महज सरकारी आवास नहीं रहा, बल्कि ‘मनहूस बंगले’ की छवि ओढ़ बैठा।

क्यों लिया गया ध्वस्तीकरण का फैसला?

राज्य सरकार ने इसे तोड़ने का निर्णय तकनीकी और सुरक्षा कारणों से लिया है। झारखंड भवन निर्माण विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, बंगले की दीवारें जर्जर हो चुकी थीं और इसकी बनावट भूकंप रोधी नहीं थी। इसके स्थान पर अब एक नया हाईटेक मुख्यमंत्री आवास बनाया जाएगा, जिसमें आधुनिक सुरक्षा व्यवस्था, स्मार्ट कम्युनिकेशन सिस्टम, प्रेस कॉन्फ्रेंस हॉल, हाई लेवल मीटिंग रूम और ग्रीन एनर्जी की सुविधाएं होंगी।

राजनीतिक बवाल भी कम नहीं

मुख्यमंत्री आवास को तोड़े जाने को लेकर विपक्ष ने सरकार को घेरा है। भाजपा नेताओं ने इसे जनता की गाढ़ी कमाई की बर्बादी बताया। उन्होंने सवाल उठाया कि जब राज्य में लाखों लोग बेघर हैं, तब करोड़ों की लागत से ‘सीएम पैलेस’ बनाना कहां तक जायज़ है? वहीं, झामुमो समर्थकों का कहना है कि यह कदम झारखंड की राजधानी को आधुनिक बनाने की दिशा में एक ठोस शुरुआत है।

अब कहां रह रहे हैं मुख्यमंत्री?

हेमंत सोरेन वर्तमान में कांके रोड स्थित झारखंड सरकार के एक अन्य बंगले में अस्थायी तौर पर रह रहे हैं, जो पहले उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो का आवास था। इस स्थान को फिलहाल मुख्यमंत्री कार्यालय के रूप में भी प्रयोग किया जा रहा है। जानकारी के अनुसार, नया सीएम हाउस बनने में करीब 18 से 24 महीने का वक्त लग सकता है।

नया बंगला – नई उम्मीद या फिर वही डर?

जहां एक तरफ सरकार इसे ‘नई शुरुआत’ कह रही है, वहीं जनता के बीच यह चर्चा फिर से गर्म है – क्या नया आवास मुख्यमंत्री की कुर्सी को स्थायित्व देगा या कैफोर्ड हाउस की ‘मनहूस छाया’ फिर से लौटेगी?

जानिए मुख्यमंत्री आवास का इतिहास: कैसे ‘कैफोर्ड हाउस’ बना झारखंड की सत्ता का केंद्र

रांची के कांके रोड पर स्थित झारखंड के मुख्यमंत्री का आधिकारिक आवास ऐतिहासिक रूप से ‘कैफोर्ड हाउस’ के नाम से जाना जाता था। इस भवन की नींव 1853 में बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर के प्रिंसिपल एजेंट कमिश्नर एलियन ने रखी थी। हालांकि, उनके स्थानांतरण के बाद कैफोर्ड ने 1854 में छोटानागपुर के पहले कमिश्नर के रूप में पदभार संभाला और इस भवन में निवास किया। उनके नाम पर ही इस आवास को ‘कैफोर्ड हाउस’ कहा जाने लगा।

झारखंड राज्य के गठन के बाद मुख्यमंत्री आवास

झारखंड राज्य के गठन (15 नवंबर 2000) के बाद, इस ऐतिहासिक भवन को राज्य के मुख्यमंत्री का आधिकारिक निवास घोषित कर दिया गया। तब से यह मुख्यमंत्री निवास न केवल सत्ता का प्रतीक बना, बल्कि यह राज्य की राजनीतिक गतिविधियों का भी केंद्र बन गया। वर्षों तक यह बंगला राज्य की राजनीति और प्रशासन का अहम हिस्सा रहा।

‘मनहूस’ की छाया: क्यों इसे लेकर थे मिथक?

हालांकि, इस भवन को लेकर कई मिथक भी जुड़े हुए थे। राजनीतिक गलियारों में यह कहा जाता था कि यहां रहने वाले मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाते थे। बाबूलाल मरांडी से लेकर अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन और मधु कोड़ा जैसे नेताओं ने इस आवास में कुछ समय बिताया, लेकिन उनके कार्यकाल में उतार-चढ़ाव आते रहे। इसी कारण से इस आवास को ‘मनहूस बंगला’ कहा जाने लगा।

मुख्यमंत्री आवास का ध्वस्तीकरण: नया युग, नई शुरुआत

अब, जब इस ऐतिहासिक भवन को ध्वस्त कर दिया गया है, यह एक पुराने दौर का अंत है। राज्य सरकार ने इसे सुरक्षा कारणों और आधुनिक सुविधाओं की आवश्यकता को देखते हुए तोड़ने का फैसला लिया। इसके स्थान पर एक नया और आधुनिक मुख्यमंत्री आवास बनने जा रहा है, जिसमें भूकंप रोधी संरचना, उच्च सुरक्षा व्यवस्था और स्मार्ट तकनीकी सुविधाएं होंगी।

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