रांची, जुलाई 2025 — झारखंड सरकार ने उच्च शिक्षा क्षेत्र में ऐतिहासिक और संरचनात्मक बदलाव करते हुए विश्वविद्यालयों की प्रशासनिक व्यवस्था में बड़ा फैसला लिया है। राज्य कैबिनेट ने झारखंड राज्य विश्वविद्यालय विधेयक 2025 को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत अब राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपति (VC), प्रतिकुलपति (Pro-VC), और वित्तीय सलाहकार की नियुक्ति सीधे राज्य सरकार द्वारा की जाएगी।
अब एक सिंगल अंब्रेला एक्ट के अंतर्गत होंगे सभी विश्वविद्यालय
इस विधेयक के लागू होने के बाद, राज्य के सभी सामान्य विश्वविद्यालय अब एक समान कानूनी ढांचे (Single Umbrella Act) के तहत आएंगे। इससे पहले सभी विश्वविद्यालयों के लिए अलग-अलग कानून थे, जिससे निर्णय प्रक्रिया में जटिलता आती थी। हालांकि, कृषि और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को इस विधेयक से बाहर रखा गया है।
गठित होगा झारखंड राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग
राज्य सरकार अब झारखंड राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (Jharkhand State University Service Commission) का गठन करेगी। यह आयोग विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक पदों की नियुक्तियों की जिम्मेदारी संभालेगा। इनमें शामिल हैं:
- रजिस्ट्रार (Registrar)
- परीक्षा नियंत्रक (Controller of Examinations)
- वित्त अधिकारी (Finance Officer)
- शिक्षक (Professors & Lecturers)
- अशैक्षणिक कर्मचारी (Non-teaching staff)
- प्राचार्य (College Principals)
इस आयोग में एक अध्यक्ष, एक प्रशासनिक सदस्य और तीन अन्य विशेषज्ञ सदस्य होंगे। अध्यक्ष का कार्यकाल 5 वर्ष, प्रशासनिक सदस्य का 4 वर्ष तथा अन्य सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष या 70 वर्ष की आयु (जो पहले हो) तक होगा।
राज्यपाल रहेंगे चांसलर, पर नहीं होगा वीसी की नियुक्ति में अधिकार
नई व्यवस्था के तहत राज्यपाल अब भी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति (Chancellor) बने रहेंगे, लेकिन उनका वीसी, प्रोवीसी और वित्तीय सलाहकार की नियुक्ति में अब कोई निर्णायक अधिकार नहीं रहेगा। यह नियुक्तियां राज्य सरकार द्वारा की जाएंगी।
इन पुराने अधिनियमों को किया जाएगा रद्द
नए विधेयक के लागू होने के साथ ही निम्नलिखित अधिनियम निरस्त माने जाएंगे:
- झारखंड राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 2000
- झारखंड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय अधिनियम 2011
- झारखंड रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय अधिनियम 2016
- पंडित रघुनाथ मुर्मू जनजातीय विश्वविद्यालय अधिनियम 2022
प्रभाव और निष्कर्ष
यह नया कानून राज्य के विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता, एकरूपता और दक्षता लाने का दावा करता है। विशेषज्ञों की मानें तो इससे नियुक्ति प्रक्रिया तेज़ और अधिक उत्तरदायी होगी, साथ ही अकादमिक गुणवत्ता में भी सुधार की संभावना है।