SIR का पूरा नाम है Special Intensive Revision (विशेष गहन पुनरीक्षण)। यह प्रक्रिया चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची को शुद्ध और पारदर्शी बनाने के लिए शुरू की जाती है।
इसमें चुनाव आयोग मतदाता सूची की गहन जांच करता है, जिसमें –
- मृत व्यक्तियों के नाम हटाए जाते हैं
- एक से अधिक जगह वोट डालने वाले लोगों की पहचान की जाती है
- फर्जी और अपात्र वोटर्स को लिस्ट से बाहर किया जाता है
हाल ही में बिहार में यह प्रक्रिया लागू हुई, जिसके नतीजों ने सियासी भूचाल खड़ा कर दिया है।
बिहार में SIR से हंगामा क्यों?
बिहार में SIR प्रक्रिया के तहत चुनाव आयोग ने अब तक लगभग 65 लाख वोटर्स के नाम हटाए। इसमें से –
- 22 लाख लोगों की मृत्यु हो चुकी थी
- 7 लाख से अधिक लोग दोहरी वोटिंग (डुप्लिकेट वोटर) के रूप में पाए गए
- जबकि शेष करीब 35 लाख वोटर्स पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर वे कौन हैं?
इसी सवाल को आधार बनाते हुए झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि यह जांच सही दिशा में है, लेकिन पारदर्शिता और जवाबदेही भी जरूरी है।
“झारखंड में भी होगा SIR” – पूर्व मुख्यमंत्री
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान भाजपा विधायक ने दावा किया कि जैसे बिहार में मतदाता सूची की समीक्षा की गई, वैसे ही जल्द ही झारखंड में भी SIR लागू होगा।
उन्होंने कहा कि –
“जब झारखंड में यह प्रक्रिया होगी तो बड़ी संख्या में फर्जी वोटर्स का नाम सामने आएगा। मतदाता सूची को सही करना लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए बेहद ज़रूरी है।”
फर्जी वोटर्स पर उठाए गंभीर सवाल
पूर्व मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि झारखंड में भी बड़ी संख्या में फर्जी वोटर्स मौजूद हैं। उनका कहना है कि –
- कई लोग एक से ज्यादा जगह वोटर लिस्ट में दर्ज हैं
- कई मृत व्यक्तियों के नाम अब भी वोटर लिस्ट में बने हुए हैं
- ऐसे नाम चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं
इसलिए उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “झारखंड में SIR होना तय है और इससे लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी।”
विपक्ष क्यों कर रहा है विरोध?
बिहार की तरह झारखंड में भी यह प्रक्रिया शुरू होने पर सियासी टकराव बढ़ना तय माना जा रहा है। विपक्षी दलों का आरोप है कि –
- SIR के बहाने गरीब और हाशिये पर खड़े समुदायों के वोट काटे जा सकते हैं
- यह प्रक्रिया सत्ताधारी दल के पक्ष में चुनावी गणित बनाने की कोशिश है
- पारदर्शिता और सही डेटा के बिना यह कदम विवाद बढ़ा सकता है
हालांकि चुनाव आयोग का कहना है कि इसका मकसद सिर्फ और सिर्फ मतदाता सूची को साफ-सुथरा बनाना है।
झारखंड की राजनीति पर असर
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर झारखंड में SIR लागू हुआ तो इसका सीधा असर अगले विधानसभा और लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा।
- फर्जी वोट हटने से चुनाव अधिक निष्पक्ष होंगे
- विपक्ष को इसे “राजनीतिक साजिश” बताने का मौका मिलेगा
- चुनाव आयोग की साख भी दांव पर होगी क्योंकि प्रक्रिया पर पारदर्शिता के सवाल उठेंगे
जनता की प्रतिक्रिया
साधारण मतदाताओं की नजर से देखें तो लोग चाहते हैं कि –
- मृत व्यक्तियों के नाम हटें
- फर्जी वोटिंग रुके
- चुनाव प्रक्रिया साफ और पारदर्शी बने
लेकिन साथ ही, आम जनता यह भी चाहती है कि सही वोटर्स का नाम गलती से न काटा जाए।
निष्कर्ष
बिहार में शुरू हुआ SIR अब झारखंड की राजनीति में भी बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री के बयान से यह साफ है कि राज्य में जल्द ही यह प्रक्रिया लागू हो सकती है। इससे जहां फर्जी वोटर्स का पर्दाफाश होगा, वहीं राजनीतिक दलों के बीच नए विवाद भी खड़े होंगे। आने वाले दिनों में झारखंड की राजनीति का बड़ा मुद्दा यही हो सकता है।