
प्रयागराज। त्रिवेणी संगम की पावन धारा में मौनी अमावस्या के पवित्र अवसर पर योगाचार्य रवि झा ने सनातन धर्म की आस्था और तप की अनूठी मिसाल पेश की। उन्होंने संगम में एक ही दिन में 1008 डुबकियां लगाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया। इस अद्भुत और आध्यात्मिक अनुष्ठान के दौरान एनडीआरएफ (NDRF) की टीम भी मौके पर मौजूद रही, ताकि सुरक्षा की दृष्टि से कोई समस्या न आए।
सनातन धर्म की आस्था का प्रतीक
योगाचार्य रवि झा का यह तप और संकल्प केवल व्यक्तिगत कीर्तिमान नहीं था, बल्कि संपूर्ण सनातन धर्म के प्रति उनकी गहरी निष्ठा और श्रद्धा का परिचायक था। मौनी अमावस्या के दिन संगम में स्नान का विशेष महत्व है। यह दिन आत्मसंयम, मौन और ध्यान का प्रतीक माना जाता है। योगाचार्य ने अपनी इस साधना से यह संदेश दिया कि सनातन धर्म केवल परंपराओं का संग्रह नहीं, बल्कि आत्मानुशासन, तप और भक्ति का जीवंत उदाहरण है।
1008 डुबकियां और आध्यात्मिक संदेश
सनातन परंपरा में 1008 का विशेष महत्व है। यह संख्या ब्रह्मांडीय ऊर्जा, ध्यान और अनंतता का प्रतीक मानी जाती है। योगाचार्य रवि झा ने यह कठिन साधना कर यह संदेश दिया कि धर्म के मार्ग पर चलने के लिए अटूट संकल्प, श्रद्धा और तप आवश्यक है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में सनातन संस्कृति को पुनः जागृत करने की आवश्यकता है और इसके लिए हर सनातनी को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।
एनडीआरएफ की मौजूदगी और सुरक्षा प्रबंधन
इतनी बड़ी संख्या में डुबकी लगाने के दौरान सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एनडीआरएफ (NDRF) की टीम पूरी तरह सतर्क रही। गोताखोरों और बचाव दल ने सुनिश्चित किया कि यह अनुष्ठान सुरक्षित रूप से संपन्न हो। टीम ने योगाचार्य की साधना को नजदीक से देखा और उनकी मानसिक एवं शारीरिक क्षमता की सराहना की।
सनातनियों के लिए संदेश
योगाचार्य रवि झा ने कहा कि आज सनातन धर्म को केवल धार्मिक आस्थाओं तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाना होगा। संगम में स्नान केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और सनातन मूल्यों की पुनर्स्थापना का अवसर है। उन्होंने कहा कि हर सनातनी को अपनी संस्कृति, परंपरा और धर्म को जीवित रखने के लिए आत्मानुशासन और संयम अपनाना होगा।
विश्व रिकॉर्ड और भविष्य की योजना
1008 डुबकियों के इस विश्व रिकॉर्ड के बाद योगाचार्य रवि झा अब आध्यात्मिक चेतना को बढ़ावा देने के लिए अन्य धार्मिक स्थलों पर इसी प्रकार के आयोजन करने की योजना बना रहे हैं। उनका उद्देश्य सनातन धर्म की महानता को पुनः स्थापित करना और युवाओं को भारतीय संस्कृति से जोड़ना है।
निष्कर्ष
योगाचार्य रवि झा का यह अभूतपूर्व प्रयास केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि सनातन धर्म की शक्ति और तप का प्रमाण है। यह अनुष्ठान हमें यह सिखाता है कि धर्म के मार्ग पर चलने के लिए दृढ़ संकल्प, भक्ति और त्याग की आवश्यकता होती है। उनकी यह साधना हर सनातनी को प्रेरणा देती है कि हमारी परंपराएं केवल इतिहास नहीं, बल्कि जीवन का आधार हैं।
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