झारखंड की प्रसिद्ध साहित्यकार, कवयित्री और आदिवासी विचारधारा की प्रबल आवाज रहीं डॉ रोज केरकेट्टा का गुरुवार को निधन हो गया। वे 85 वर्ष की थीं और पिछले कुछ वर्षों से अस्वस्थ चल रही थीं। कोविड-19 के बाद से ही उनकी सेहत में लगातार गिरावट आई थी।
उनकी बेटी वंदना टेटे ने मीडिया को बताया कि रांची स्थित उनके आवास पर सुबह करीब 10:30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। वर्ष 2023 से वह बिस्तर पर ही थीं और पिछले कुछ दिनों से उन्होंने भोजन लेना भी लगभग बंद कर दिया था।
सिमडेगा से रांची तक का साहित्यिक सफर
रोज केरकेट्टा का जन्म झारखंड के सिमडेगा जिले में हुआ था। अपने करियर की शुरुआत उन्होंने हिंदी शिक्षिका के रूप में की। बाद में रांची आकर उन्होंने साहित्यिक लेखन और सामाजिक कार्यों में खुद को समर्पित कर दिया। उनकी साहित्यिक पहचान उनके कहानी संग्रह ‘पघा जोरी-जोरी रे घाटो’ से बनी, जो काफी लोकप्रिय हुआ।
उन्होंने हिंदी के साथ-साथ खड़िया भाषा में भी कई महत्वपूर्ण कृतियाँ लिखीं और प्रेमचंद की कहानियों का खड़िया में अनुवाद कर भाषायी समृद्धि को नया आयाम दिया।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दी भावभीनी श्रद्धांजलि
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रोज केरकेट्टा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया। उन्होंने सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि देते हुए लिखा:
“रोज दी ने जल-जंगल-जमीन, महिला और झारखण्डी अधिकारों को अपनी लेखनी से एक सशक्त स्वर प्रदान किया। उनका जाना साहित्य जगत और आदिवासी समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है।”
सीएम ने दिवंगत आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हुए परिवार को इस दुःख की घड़ी में संबल प्रदान करने की कामना की।
एक युग का अंत, लेकिन विचारों की प्रेरणा शेष रहेगी
रोज केरकेट्टा के विचार, लेखनी और जीवनशैली आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी। साहित्य और समाज के क्षेत्र में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।