रांची: झारखंड में राज्यकर्मियों के लिए कैशलेस इलाज योजना को लेकर एक बड़ा विवाद सामने आया है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता पर आरोप लगाया गया है कि राज्यकर्मियों के कैशलेस इलाज की फाइल पिछले दो महीनों से उनके पास लंबित है, और अब तक उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इस देरी से राज्यकर्मियों में गहरा असंतोष है, जो इस योजना के जल्द लागू होने की उम्मीद कर रहे थे।

निविदा प्रक्रिया पूरी, फिर क्यों रुकी फाइल?

राज्य के कैशलेस इलाज योजना के तहत निविदा प्रक्रिया पूरी की जा चुकी है। प्रीमियम की न्यूनतम दर देने वाली बीमा कंपनी को चयनित कर लिया गया था, और निविदा समिति, वित्त विभाग, एवं विधि विभाग ने इस पर अपनी सहमति दे दी थी। इसके बावजूद, बीमा कंपनी को कार्यादेश जारी करने की प्रक्रिया में देरी हो रही है। सवाल यह उठता है कि आखिरकार फाइल स्वास्थ्य मंत्री के पास क्यों रोकी गई है?

वित्तीय अनियमितता का संदेह

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि फाइल पर मंत्री की चुप्पी के पीछे किसी प्रकार की वित्तीय अनियमितता हो सकती है। बीमा कंपनी से कथित तौर पर “निगोसिएशन” करने के आरोप लगाए जा रहे हैं, जो अगर सत्य होते हैं, तो यह राज्यकर्मियों के हितों के विपरीत हो सकता है। इस संदर्भ में उठाए गए सवाल गंभीर हैं, क्योंकि कैशलेस इलाज जैसी योजना, जो कर्मचारियों के लिए राहत का साधन होनी चाहिए, उसके कार्यान्वयन में इस प्रकार की देरी से संदेह गहराता है।

पुरानी निविदा की विफलता से बढ़ा असंतोष

यह मुद्दा और भी गंभीर इसलिए हो जाता है क्योंकि यह पहली बार नहीं है जब कैशलेस इलाज योजना में देरी हुई है। 2023 में भी निविदा प्रक्रिया के दौरान तीन सरकारी बीमा कंपनियों ने भाग लिया था, लेकिन तकनीकी कारणों से एक कंपनी को बाहर कर दिया गया था। बाकी दो कंपनियों में से न्यूनतम दर देने वाली कंपनी को कार्यादेश देने के बजाय निविदा को रद्द कर दिया गया था। इस बार निविदा समिति और अन्य विभागों की सहमति के बावजूद फाइल फिर से रुकी हुई है, जिससे राज्यकर्मियों का असंतोष और बढ़ गया है।

तकनीकी अड़चनें या कोई और कारण?

स्वास्थ्य मंत्री की ओर से यह सफाई दी गई है कि फाइल में “तकनीकी अड़चनें” हैं, जिन्हें दूर किया जा रहा है। हालांकि, इस सफाई से राज्यकर्मियों का असंतोष कम होता नजर नहीं आ रहा है। कर्मचारियों का सवाल है कि जब निविदा प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और सभी औपचारिकताएं पूरी हो गई हैं, तो तकनीकी अड़चनें कहां से आ रही हैं और क्यों नहीं उन्हें शीघ्र सुलझाया जा रहा है?

राज्यकर्मियों में आक्रोश

इस पूरी प्रक्रिया में देरी से राज्यकर्मियों में गहरा आक्रोश है। कई कर्मी इस बात से नाराज हैं कि उनकी स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सरकार इतनी धीमी गति से काम क्यों कर रही है। वे चाहते हैं कि कैशलेस इलाज की योजना जल्द से जल्द लागू हो, ताकि उन्हें और उनके परिवारों को चिकित्सा सेवाओं का लाभ मिल सके।

आगे की राह

अब देखना यह है कि राज्य सरकार और स्वास्थ्य मंत्री इस मामले पर क्या कदम उठाते हैं। अगर इस मुद्दे का जल्द समाधान नहीं किया गया, तो यह न केवल राज्यकर्मियों के असंतोष को और बढ़ाएगा, बल्कि सरकार के कामकाज पर भी सवाल उठाएगा। कैशलेस इलाज योजना का शीघ्र लागू होना राज्यकर्मियों के लिए आवश्यक है, और इसके लिए जल्द निर्णय की जरूरत है।

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