झारखंड उच्च न्यायालय ने सहायक आचार्य नियुक्ति परीक्षा में पारा शिक्षकों को दी गई क्वालिफाइंग अंकों की छूट को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश एम.एस. रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति दीपक रोशन की खंडपीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
क्या है मामला?
झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) ने पारा शिक्षकों को सहायक आचार्य नियुक्ति में क्वालिफाइंग अंकों में विशेष छूट प्रदान की थी। यह छूट उन पारा शिक्षकों के लिए थी जो वर्षों से शिक्षण कार्य में संलग्न हैं। हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने इसे चुनौती देते हुए दावा किया कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, जो समानता के अधिकार की गारंटी देता है।
कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने इस छूट को गैर-संवैधानिक मानते हुए इसे समाप्त कर दिया। अब पारा शिक्षकों को भी अन्य अभ्यर्थियों की तरह न्यूनतम अर्हक अंक प्राप्त करने होंगे। इस फैसले से सहायक आचार्य नियुक्ति की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव हुआ है।
प्रभाव और चुनौतियां
इस निर्णय का सीधा प्रभाव 26,001 पदों की भर्ती प्रक्रिया पर पड़ेगा, जिसमें से 13,000 पद पारा शिक्षकों के लिए आरक्षित थे। अब पारा शिक्षकों को इन पदों पर नियुक्ति के लिए समान शर्तों को पूरा करना होगा। न्यूनतम अंकों की बाध्यता से इन पदों की पूर्ति में देरी हो सकती है और पारा शिक्षकों के भविष्य पर भी प्रश्नचिह्न लग सकता है।
पारा शिक्षकों की प्रतिक्रिया
झारखंड प्रदेश सहायक अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष संजय कुमार दुबे ने इस फैसले पर नाराजगी जाहिर करते हुए मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री से अपील की है। उन्होंने कहा कि 20-25 वर्षों से सेवा कर रहे पारा शिक्षकों को आचार्य नियमावली से मुक्त कर 13,000 पदों पर सीधे समायोजित किया जाए।
भविष्य की दिशा
झारखंड उच्च न्यायालय का यह फैसला राज्य में शिक्षा क्षेत्र की भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी और समान बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, यह पारा शिक्षकों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है, जिन्हें अब समान शर्तों पर प्रतिस्पर्धा करनी होगी।
निष्कर्ष:
यह निर्णय राज्य में शिक्षण क्षेत्र में सुधार और समानता सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण है, लेकिन पारा शिक्षकों के लिए यह एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है। अब देखना होगा कि सरकार और संबंधित विभाग इस मामले को कैसे संभालते हैं।