रांची: झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) के पहले अध्यक्ष को 21 साल पुराने एक गबन और भ्रष्टाचार मामले में दोषी करार दिया गया है। सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एस.एन. तिवारी की अदालत ने उन्हें दो साल की सजा और एक लाख रुपये का जुर्माना सुनाया है।
केस की पृष्ठभूमि
राज्य गठन के बाद जब जेपीएससी की स्थापना हुई, तब आयोग के पहले अध्यक्ष ने एक महत्त्वपूर्ण टेंडर प्रक्रिया में कथित गड़बड़ी की थी। ओएमआर स्कैनिंग मशीन की आपूर्ति के लिए जिस कंपनी को टेंडर दिया गया, वह बोली के मानकों पर खरी नहीं उतरती थी। इसके बावजूद, नियमों को ताक पर रखकर उस कंपनी को ठेका दिया गया।
कैसे हुआ राजस्व का नुकसान?
इस टेंडर में मेसर्स मेथोडैक्स सिस्टम्स नामक कंपनी की बोली कम थी, लेकिन मनपसंद कंपनी को टेंडर देकर करीब 13.56 लाख रुपए का नुकसान सरकारी खजाने को हुआ। वहीं उतने ही अनुपात में निजी लाभ संबंधित कंपनी को हुआ।
अदालत की प्रक्रिया और फैसले की टाइमलाइन
- 2004: टेंडर प्रक्रिया की शुरुआत
- 2005: घोटाले की FIR दर्ज
- 2013: CBI ने मामले को अपने हाथ में लिया
- 2014: चार्जशीट दाखिल की गई (34 गवाहों के आधार पर)
- 2018: आरोप तय किए गए
- 2024 (जुलाई): अभियोजन पक्ष की गवाही समाप्त
- 2025 (जनवरी): बचाव पक्ष की गवाही खत्म
- 19 जुलाई 2025: अंतिम बहस समाप्त
- 26 जुलाई 2025: सजा का ऐलान
अन्य अभियुक्तों को भी सजा
मामले में अन्य दो आरोपियों को भी दोषी ठहराया गया है। दोनों को दो-दो साल की जेल और 50-50 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई है।
निष्कर्ष
झारखंड लोक सेवा आयोग जैसे संस्थान में पारदर्शिता और निष्पक्षता की उम्मीद होती है। लेकिन जब उसके शीर्ष पर बैठे अधिकारी ही नियमों को तोड़कर निजी लाभ के लिए काम करें, तो पूरा सिस्टम सवालों के घेरे में आ जाता है। यह फैसला न केवल भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सख्त संदेश है, बल्कि प्रशासनिक प्रक्रियाओं की जवाबदेही को भी रेखांकित करता है।