झारखंड में आदिवासियों की जमीन की सुरक्षा के लिए लागू छोटानागपुर काश्तकारी (सीएनटी) अधिनियम का ही दुरुपयोग कर भू-माफिया आदिवासियों की संपत्ति हड़प रहे हैं। फर्जी वंशावली के जरिए बड़े पैमाने पर जमीनों के हस्तांतरण और कब्जे के मामले सामने आए हैं। हाल ही में राज्य के कल्याण मंत्री चमरा लिंडा, विधायक जिगा सुसारन होरो और विधायक राजेश कच्छप ने इस गंभीर मुद्दे पर दक्षिणी छोटानागपुर आयुक्त को शिकायत दी, जिसके बाद जांच शुरू की गई है।

मामले का खुलासा कैसे हुआ?

शिकायत में रांची के रातू थाना क्षेत्र के नयाटोली (सिमलिया) के रहने वाले बिशु उरांव और जगन्नाथ उरांव का उल्लेख है, जो खतियानी रैयत मिठुआ उरांव के वंशज बताए गए हैं। आरोप है कि इन लोगों ने फर्जी वंशावली के आधार पर कई सौ एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया और गैर-आदिवासियों को बेच दी। सादा बिक्री पट्टे और फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से इन जमीनों का बड़े पैमाने पर लेन-देन हुआ।

हरमू मौजा के खाता संख्या 53, 135 और 89 में 18.51 एकड़ आदिवासी जमीन के अवैध हस्तांतरण का मामला भी जांच के घेरे में है। इसके अलावा, एसएआर कोर्ट में गलत वंशावली के आधार पर दर्जनों मामलों में मुआवजा राशि लेने के आरोप हैं।

फर्जी वंशावली कैसे बनाई गई?

शिकायत के अनुसार, बिशु उरांव ने सिमलिया मौजा की जमीन के लिए अलग-अलग मामलों में अलग-अलग वंशावली प्रस्तुत की। उदाहरण के तौर पर, खाता नंबर 158 की जमीन के लिए उनकी वंशावली में शमुआ उरांव को परदादा और मिठुआ उरांव को पिता बताया गया है। वहीं, हरमू मौजा के लिए दाखिल किए गए दस्तावेजों में मिठुआ उरांव के स्थान पर बांगी उराइन का नाम दिया गया है।

जांच और कार्रवाई की स्थिति

विधायकों की शिकायत पर रांची के डीसी ने 18 जनवरी 2025 को संबंधित अधिकारियों को इस मामले की जांच के आदेश दिए। डीसी ने निर्देश दिया कि फर्जी वंशावली के आधार पर हुए भूमि हस्तांतरण और कब्जों की जांच कर, स्पष्ट रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।

मंत्री और विधायकों का बयान

कल्याण मंत्री चमरा लिंडा ने कहा कि यह मामला राज्य में हो रहे कई ऐसे फर्जीवाड़ों की केवल बानगी है। यदि गहराई से जांच की जाए, तो सैकड़ों ऐसे मामले सामने आ सकते हैं, जहां आदिवासी जमीनों को इसी तरह कब्जा किया गया है।

लंबे समय से शिकायतें लंबित

इस मामले को लेकर मार्च 2022 में रांची आयुक्त को पहली शिकायत दी गई थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब जब चमरा लिंडा मंत्री बने, तो इस पर जांच प्रक्रिया शुरू हुई है।

समस्या की जड़

झारखंड में आदिवासी जमीनों को सुरक्षित रखने के लिए बनाए गए कानूनों का फायदा उठाकर भू-माफिया स्थानीय प्रशासन और अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी दस्तावेज तैयार कर रहे हैं। शिकायतों में कहा गया है कि जहां जिस जमीन पर कब्जा करना होता है, वहीं की वंशावली बनाई जाती है।

निष्कर्ष

झारखंड में आदिवासी संपत्ति की सुरक्षा के लिए सख्त कानूनों के बावजूद फर्जीवाड़े का यह मामला गंभीर चिंता का विषय है। जांच एजेंसियों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे ऐसे मामलों की तह तक जाएं और दोषियों को सजा दिलाएं, ताकि भविष्य में आदिवासी समुदाय की जमीनों को लूटने की कोशिश न हो।

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