झारखंड में शिक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाए रखने में अहम भूमिका निभाने वाले 60 हजार पारा शिक्षक (सहायक अध्यापक) अब हड़ताल की राह पर हैं। झारखंड सहायक अध्यापक संघर्ष मोर्चा (Jharkhand Assistant Teachers Sangharsh Morcha) ने राज्य सरकार की वादाखिलाफी के खिलाफ आंदोलन का ऐलान कर दिया है। मोर्चा ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ज्ञापन सौंपते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर उनकी मांगे पूरी नहीं होती हैं, तो 15 अक्टूबर से सभी पारा शिक्षक हड़ताल पर चले जाएंगे।
सरकार की वादाखिलाफी और पारा शिक्षकों का गुस्सा
पारा शिक्षकों का आरोप है कि सरकार ने उनके साथ किए गए वादों को पूरा नहीं किया। उन्होंने कहा कि सरकार ने उनके मानदेय में 1000 रुपये की बढ़ोतरी और ईपीएफ (कर्मचारी भविष्य निधि) लागू करने का आश्वासन दिया था। इसके साथ ही, सरकार को हर पारा शिक्षक के वेतन में 1950 रुपये अपनी ओर से जोड़ने थे। लेकिन, यह वादा अब तक जमीन पर नहीं उतर सका। इस कारण पारा शिक्षकों में भारी निराशा और आक्रोश है।
पारा शिक्षक झारखंड के ग्रामीण और सुदूर इलाकों में शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते आए हैं। लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति और वेतनमान को लेकर लंबे समय से संघर्ष चल रहा है। वेतनमान सुधार के साथ ही सामाजिक सुरक्षा के लिए ईपीएफ जैसी सुविधाओं को लागू करने की मांग पर शिक्षक लगातार आवाज उठा रहे हैं।
हड़ताल की तिथि और आंदोलन का कार्यक्रम
पारा शिक्षकों ने 15 अक्टूबर से असहयोग आंदोलन का ऐलान किया है। इसी दिन झारखंड सरकार के खिलाफ पुतला दहन भी किया जाएगा। इससे पहले, 14 अक्टूबर को राज्य के सभी जिलों में बैठकें आयोजित होंगी, जिसमें पारा शिक्षक राज्य के वित्त मंत्री, शिक्षा मंत्री और गिरिडीह के सदर विधायक की प्रतीकात्मक शव यात्रा निकालेंगे। इस प्रदर्शन के बाद 17 अक्टूबर से पारा शिक्षक मुख्यमंत्री आवास का घेराव करेंगे।
यह आंदोलन राज्य सरकार के खिलाफ शिक्षकों के गहरे असंतोष और नाराजगी को दर्शाता है। पारा शिक्षक लंबे समय से वेतनमान और स्थायी नौकरी की मांग कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अब तक स्थायी समाधान नहीं मिल सका है।
आंदोलन के पीछे की वजहें
पारा शिक्षकों की नाराजगी की सबसे बड़ी वजह यह है कि सरकार द्वारा दिए गए आश्वासन अब तक पूरे नहीं हुए। राज्य सरकार ने कई बार वादा किया कि उनका वेतनमान बढ़ाया जाएगा और उन्हें ईपीएफ जैसी सुरक्षा प्रदान की जाएगी, लेकिन ये वादे अब तक केवल कागजों पर ही सीमित हैं।
वेतन में मामूली बढ़ोतरी के बावजूद पारा शिक्षकों का मानदेय उनकी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं है। खासकर, ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले शिक्षकों के लिए ये मानदेय काफी कम है। इसके अलावा, ईपीएफ लागू न होने से उनकी सामाजिक सुरक्षा भी सुनिश्चित नहीं हो पा रही है।
सरकार से उम्मीदें और हड़ताल का असर
झारखंड के पारा शिक्षकों ने राज्य सरकार को कई बार अपनी समस्याओं से अवगत कराया है, लेकिन जब सरकार ने इन मुद्दों पर गंभीरता नहीं दिखाई, तब जाकर उन्होंने आंदोलन का रास्ता चुना। हड़ताल का ऐलान होने के बाद शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर असर पड़ सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पारा शिक्षक ही शिक्षा का मुख्य आधार हैं।
सरकार और पारा शिक्षकों के बीच संवादहीनता और असंतोष की यह स्थिति राज्य के शिक्षा तंत्र पर गहरा प्रभाव डाल सकती है। अगर हड़ताल लंबे समय तक जारी रही, तो इससे झारखंड के हजारों छात्र प्रभावित हो सकते हैं, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां नियमित शिक्षकों की संख्या पहले से ही कम है।
निष्कर्ष
पारा शिक्षकों का आंदोलन झारखंड की शिक्षा व्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है। उनकी मांगें वाजिब हैं और सरकार को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए। अगर सरकार जल्द से जल्द कोई समाधान नहीं निकालती है, तो यह हड़ताल राज्य की शिक्षा प्रणाली को कमजोर कर सकती है।
अब देखना यह है कि सरकार और पारा शिक्षकों के बीच बातचीत किस दिशा में जाती है। क्या सरकार उनकी मांगों को मानकर हड़ताल को टाल पाएगी या फिर पारा शिक्षक आंदोलन को और तेज करेंगे, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा। लेकिन एक बात तय है कि इस संघर्ष का असर झारखंड के शैक्षिक वातावरण पर व्यापक रूप से देखने को मिल सकता है।