रांची
झारखंड सरकार ने आदिवासी हितों को केंद्र में रखते हुए एक अहम फैसला लिया है। अब राज्य के 50 प्रतिशत से अधिक आदिवासी आबादी वाले इलाकों में किसी भी प्रकार के होटल, रेस्तरां, शराब दुकान या बार खोलने से पहले ग्रामसभा की अनिवार्य सहमति लेनी होगी। चाहे वह फाइव स्टार होटल हो या अंतरराष्ट्रीय स्तर का पर्यटन स्थल, ग्रामसभा की सहमति के बिना ऐसे प्रोजेक्ट्स को मंजूरी नहीं दी जाएगी।
यह फैसला बुधवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में हुई जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (TAC) की बैठक में लिया गया। सरकार का उद्देश्य है कि आदिवासी बहुल क्षेत्रों में स्थानीय समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित की जाए और उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना को बिना उनकी सहमति के प्रभावित न किया जाए।
पर्यटन विकास के साथ आदिवासी अधिकारों का संतुलन
बैठक में पर्यटन विभाग की ओर से राज्य के अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, राजकीय और स्थानीय महत्व के पर्यटन स्थलों को विकसित करने के प्रस्ताव भी रखे गए, जिनमें धार्मिक स्थलों को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में शराब दुकानों की अनुमति पर चर्चा हुई। सरकार ने स्पष्ट किया कि इन इलाकों में किसी भी प्रकार की होटल या शराब दुकान की स्थापना ग्रामसभा की अनुमति के बाद ही संभव होगी।
स्थानीय दुकानों का संचालन आदिवासियों को मिले – सदस्यों की मांग
बैठक में यह मुद्दा भी उठा कि आदिवासी क्षेत्रों में चलने वाली दुकानों का संचालन स्थानीय आदिवासी समुदाय को ही दिया जाए। हालांकि इस पर अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है, लेकिन चर्चा में इसे गंभीरता से लिया गया और संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।
आदिवासी जमीन की खरीद-बिक्री में थाना बाध्यता पर भी विचार
बैठक में झारखंड के कई जनप्रतिनिधियों ने यह मुद्दा भी उठाया कि आदिवासी भूमि की खरीद-बिक्री के मामलों में थाने की बाध्यता को सरल किया जाए। इस संबंध में कानूनी राय लेने और एक समिति गठित करने का निर्णय लिया गया है। समिति यह देखेगी कि किसी क्षेत्र में थाना किस रूप में गठित है – राजस्व थाना या पुलिस थाना। इसके आधार पर तय होगा कि भूमि संबंधित मामलों में किस स्तर पर अनुमति आवश्यक होगी।
मुख्यमंत्री ने कहा – दस्तावेज तैयार होने के बाद होगा अंतिम निर्णय
मुख्यमंत्री ने बैठक के बाद कहा कि आदिवासियों की भूमि सुरक्षा, ग्रामसभा की भूमिका और पर्यटन विकास जैसे विषयों पर गहराई से चर्चा हुई है। संबंधित विभागों को मसौदा दस्तावेज तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं और इन पर अंतिम निर्णय दस्तावेजों के आधार पर ही लिया जाएगा।
सरकार का यह कदम आदिवासी अधिकारों की रक्षा, पारंपरिक ग्रामसभा की सशक्त भूमिका और स्थानीय संस्कृति के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है। आने वाले समय में इससे न केवल प्रशासनिक प्रक्रियाएं अधिक जवाबदेह होंगी, बल्कि आदिवासी समाज को आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ाने का भी रास्ता खुलेगा।