हमारे संविधान के पहले अनुच्छेद की पहली पंक्ति कहती है कि “भारत अर्थात इंडिया राज्यों का संघ होगा”. इस पंक्ति में भारत और इंडिया दोनों नामों का इस्तेमाल किया गया है. अंग्रेजी में यह अनुच्छेद इस तरह शुरू होता है, ‘इंडिया दैट इज भारत’. इसका मतलब यह है कि भारतीय संविधान के हिसाब से हमारे देश के दो आधिकारिक नाम हैं. इंडिया और भारत. हालांकि इसे हिंदुस्तान, आर्यावर्त और जंबूद्वीप कह कर भी पुकारा जाता है. मगर इंडिया और भारत के अलावा इसके जो भी नाम हैं, वे अनौचारिक हैं, संवैधानिक नहीं हैं. इसलिए जब सोमवार, 22 नवंबर, 2020 को बिहार विधानसभा में शपथ ग्रहण समारोह के दौरान एआईएमआईएम के नव निर्वाचित विधायक अख्तरुल इमान ने शपथ ग्रहण के लिए उन्हें दी गयी पर्ची में हिंदुस्तान शब्द पर आपत्ति जतायी तो मुमकिन है, उनका कोई अलग राजनीतिक महत्व रहा हो. मगर वे कानूनन और संवैधानिक रूप से बिल्कुल सही थे. क्योंकि हमारे देश का आधिकारिक नाम भारत और इंडिया ही है, हिंदुस्तान नहीं.

शपथ ग्रहण के दौरान अख्तरुल इमान की इस टिप्पणी के बाद बिहार विधानसभा में काफी तीखी नोंक-झोंक हुई. छातापुर के भाजपा विधायक नीरज कुमार बबलू ने उनकी इस टिप्पणी के बाद सख्त एतराज जताया और कहा कि अगर आप हिंदुस्तान नहीं कह सकते तो आपको पाकिस्तान चले जाना चाहिए. सोशल मीडिया में और कई जगह मेनस्ट्रीम मीडिया में भी अख्तरुल इमान को इस रूप में पेश किया गया कि जैसे वे देशद्रोही हों. भारत के प्रति सम्मान नहीं होने की वजह से वे हिंदुस्तान के नाम की शपथ लेना नहीं चाहते हैं. ऐसा इसलिए भी हुआ कि वे इस तथ्य से ठीक तरह से अवगत नहीं थे कि संविधान में हमारे देश का क्या नाम दर्ज है और यह नाम कितनी बहसों के बाद तय हुआ है. आने वाले दिनों में भी देश के नाम को लेकर कितने विवाद हुए हैं और वे अदालतों में और संसद में पहुंचे हैं. इसके बावजूद संसद में जो हमारा नाम भारत अर्थात इंडिया तय हुआ वह सत्तर साल के बाद भी जस का तस है. अगर लोग इस बारे में जानते होते तो शायद यह अप्रिय विवाद नहीं होता.

17 सितंबर, 1949 को जब संविधान की ड्राफ्टिंग कमिटी के चेयरमैन डॉ. भीमराव अंबेडकर संविधान सभा के सामने पहला अनुच्छेद का ड्राफ्ट लेकर पहुंचे थे, तो वे चाहते थे कि इसे आधे घंटे के अंदर पास कर दिया जाये. मगर इस अनुच्छेद 1 की पहली ही पंक्ति ऐसी थी, जिस पर विवाद हो गया. वह पंक्ति थी, इंडिया दैट इज भारत यानी हिंदी में भारत अर्थात इंडिया राज्यों का संघ होगा. फिर इंडिया और भारत शब्द पर दो दिन तक बहस चली. यह बहस वाजिब भी थी, क्योंकि हमारे संविधान निर्माता देश का आधिकारिक नाम तय कर रहे थे. यह कोई साधारण बात नहीं थी.

18 सितंबर, 1949 को इस बहस में ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक के नेता एचवी कामत ने पहला संशोधन पेश किया और उन्होंने कहा कि भारत अर्थात इंडिया के बदले अगर भारत या अंग्रेजी में जिसे इंडिया कहते हैं, या हिंद जिसे अंग्रेजी में इंडिया कहते हैं किया जाये. उन्होंने कहा कि जिस तरह एक नये बच्चे का नामकरण होता है, देश का नामकरण भी गंभीरता से होना चाहिए. हालांकि उनके प्रस्ताव पर बहसें हुईं और बाद में उनसे सिर्फ एक नाम मांगा गया तो उन्होंने भारत का नाम लिया.

संविधान सभा में हिंदुस्तान के नाम की भी चर्चा हुई. 24 नवंबर, 1949 को बिहार के ही नेता मोहम्मद ताहिर ने कहा कि अगर डॉ. अंबेडकर से कोई उनके देश का नाम पूछेंगे तो वे भारत, इंडिया या हिंदुस्तान कहेंगे. वे यह तो नहीं कहेंगे उनके देश का नाम भारत अर्थात इंडिया है. मगर ऐसा माना जाता है कि इसके पीछे उनका आशय यह जताना था कि देश के तीन नाम हैं, भारत, हिंदुस्तान और इंडिया. जबकि संविधान में दो को शामिल कर लिया गया है, एक को छोड़ दिया गया है.

हिंदुस्तान को लेकर अमूमन भारतीय मुसलमानों में दो तरह की धारणा है. चूंकि भारत में इस्लामिक बादशाहों की शुरुआत से इसे हिंदुस्तान कहा जाने लगा था, इसलिए इस नाम से उनका सहज जुड़ाव रहता है. मगर चूंकि हिंदुस्तान से यह बोध भी आता है कि यह हिंदुओं का देश है. इसलिए एक धड़ा इस नाम से परहेज भी करता है. दिलचस्प है कि जहां बिहार विधानसभा के उर्दू अनुवादकों ने अख्तरुल इमान को उनका शपथ ग्रहण वाला जो पत्र दिया था, उसमें उन्होंने भारत का अनुवाद हिंदुस्तान कर दिया था. क्योंकि यह शब्द उन्हें उर्दू के लिहाज से मुफीद लगा होगा.

जबकि खुद भारत में हिंदुत्ववादी विचारधारा के शिखर पुरुष सावरकर भारत के मुकाबले हिंदुस्तान को अधिक पसंद करते थे. उनका मानना था कि यह हिंदुओं का देश है, इसलिए इसका नाम हिंदुस्तान ज्यादा ठीक है. हालांकि वे इसे भी बदल कर हिंदुस्थान या सिंधुस्थान करना चाहते थे. वहीं पाकिस्तानी हुकूमत भी भारत को हिंदुस्तान कह कर पुकारती रही है. क्योंकि इस तरह उनकी टू नेशन थियरी भी सही साबित होती है, जिसके हिसाब से भारत हिंदुओं का देश है और पाकिस्तान मुसलमानों का देश. 2003 में विश्व हिंदू परिषद की तरफ से भी भारत के बदले हिंदुस्तान का नाम रखने की मांग की गयी थी.

दिलचस्प है कि हिंदुत्ववादी विचारधारा को मानने वाले कई लोग इंडिया नाम भी पसंद करते हैं. ऐसे ही एक व्यक्ति वी सुंदरम ने 2005 में इंडिया के पक्ष में एक आलेख लिखा था. उनका मानना था कि चूंकि आजादी से पहले भारत इंडिया ही कहा जाता था और उस इंडिया में पाकिस्तान भी शामिल था और बांग्लादेश भी. इसलिए जब तक इंडिया देश का नाम रहेगा, इंडिया के सभी पुराने हिस्सों को एक साथ जोड़ने और अखंड भारत का सपना पूरा करने की संभावना बनी रहेगी.

हालांकि आमतौर पर लोग संविधान में जुड़े इंडिया शब्द को नापसंद ही करते हैं. कई दफा इसे हटाने के प्रयास हुए. 2012 में तो कांग्रेस के एक सांसद शांताराम नायक जो गोआ से थे, ने राज्यसभा में एक बिल पेश करके मांग की थी कि संविधान की प्रस्तावना में, अनुच्छेद एक में और संविधान में जहां-जहां इंडिया शब्द का उपयोग हुआ हो उसे बदल कर भारत कर दिया जाए. उन्होंने इस मौके पर ‘भारत माता की जय” के आजादी के नारे और “जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़ियां करती है बसेरा, वो भारत देश है मेरा” गीत को भी याद किया. उन्होंने कहा कि इंडिया शब्द से एक सामंतशाही शासन का बोध होता है, जबकि भारत से नहीं.

आखिर में हम उस मामले तक आते हैं, जब इसी साल 3 जून को एक याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भारत और इंडिया दोनों नाम भारतीय संविधान के दिये हुए हैं. इंडिया को संविधान में पहले ही भारत कहा गया है. इसलिए वे इस नाम को बदल नहीं सकते. इसके लिए उन्होंने इस आवेदन को केंद्र सरकार के पास भेज दिया है. दरअसल, आवेदक चाहते थे कि देश को एक ही नाम से पुकारा जाये, वह भारत हो, इंडिया विदेशी नाम है. इसका इस्तेमाल नहीं हो.

इस तरह हम देखते हैं कि आजादी के बाद से ही देश के नाम को लेकर खूब बहसें हुई हैं. एक ही विचारधारा के बीच लोग इस मसले को अलग-अलग भी देखते रहे हैं. मगर संविधान में इंडिया और भारत नाम का ही जिक्र है, हिंदुस्तान का नहीं. इसलिए अगर कोई विधायक हिंदुस्तान के बदले भारत के नाम की शपथ लेता है तो वह इस देश के संविधान के साथ ही है, उसे राष्ट्रद्रोही कहना या पाकिस्तान चले जाने के लिए कहना गलत परंपरा है. विधानसभा जैसे संविधानिक स्थल पर इस तरह की गैरजिम्मेदार टिप्पणी की निंदा होनी चाहिए. (डिस्क्लेमर: यह लेखक के निजी विचार हैं.)

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