क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक, जिन्होंने दुनिया भर में अपनी नवीन शैक्षिक और पर्यावरणीय पहलों के लिए ख्याति अर्जित की है, आज से अनिश्चितकालीन उपवास पर जा रहे हैं। इसके पीछे का मुख्य कारण यह है कि उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और केंद्रीय गृहमंत्री से मिलने के लिए समय मांगा था, लेकिन सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। इस उपवास के जरिए वांगचुक लद्दाख के भविष्य और वहां के पर्यावरणीय और संवैधानिक मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं।
सोनम वांगचुक की मांगें और उनका संघर्ष
सोनम वांगचुक ने लेह से शुरू की गई ‘दिल्ली चलो पदयात्रा’ का नेतृत्व किया, जिसका उद्देश्य लद्दाख को राज्य का दर्जा दिलाने और इसे भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करवाना था। लद्दाख क्षेत्र में पिछले चार वर्षों से चल रहे आंदोलन का नेतृत्व लेह एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस कर रहे हैं। यह आंदोलन इस बात पर केंद्रित है कि लद्दाख को पर्याप्त संवैधानिक सुरक्षा और राज्य का दर्जा मिलना चाहिए ताकि क्षेत्र के निवासियों के सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय अधिकार संरक्षित रहें।
वांगचुक ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और केंद्रीय गृहमंत्री को पत्र लिखकर बैठक की मांग की थी ताकि वे अपनी चिंताओं और लद्दाख के मुद्दों पर सरकार से चर्चा कर सकें। उन्हें आश्वासन दिया गया था कि शुक्रवार शाम 5 बजे तक उन्हें बैठक के बारे में सूचित किया जाएगा, लेकिन जब सरकार से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, तो उन्होंने अनिश्चितकालीन उपवास पर बैठने का फैसला किया।
पर्यावरण और संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई
लद्दाख एक संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र वाला क्षेत्र है, और जलवायु परिवर्तन का इस क्षेत्र पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। ग्लेशियरों का पिघलना, पानी की कमी, और तापमान में असामान्य वृद्धि जैसी समस्याएं यहां की मुख्य चिंताएं हैं। वांगचुक लंबे समय से पर्यावरणीय स्थिरता और जलवायु संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं, और उनका मानना है कि यदि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष संरक्षण नहीं मिलता, तो यहां की पारिस्थितिकी और स्थानीय संस्कृति को अपूरणीय क्षति हो सकती है।
संविधान की छठी अनुसूची जनजातीय और पारंपरिक समुदायों को उनके क्षेत्रों में अधिक स्वायत्तता और सुरक्षा प्रदान करती है। लद्दाख की जनजातीय आबादी के अधिकारों की सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें इस अनुसूची के तहत संरक्षित किया जाए, ताकि बाहरी हस्तक्षेप और अनियंत्रित विकास से क्षेत्र की पारंपरिक जीवनशैली और पर्यावरणीय संपदा को बचाया जा सके।
अनशन और शांतिपूर्ण आंदोलन
सोनम वांगचुक ने जंतर मंतर में अपने उपवास और धरने के लिए जगह की मांग की है, लेकिन उन्हें अब तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं मिली है। उन्होंने सभी राजनीतिक दलों और संगठनों से अनुरोध किया है कि वे उन्हें अपना शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन जारी रखने के लिए स्थान उपलब्ध कराएं। वांगचुक का यह कदम गांधीवादी विचारधारा पर आधारित है, जिसमें शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात को सामने रखा जाता है और सरकार से कार्रवाई की मांग की जाती है।
लद्दाख के लिए यह संघर्ष क्यों महत्वपूर्ण है?
लद्दाख एक सामरिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी नाजुक है, और जलवायु परिवर्तन का सीधा प्रभाव यहां के जनजीवन पर पड़ रहा है। इसके साथ ही, लद्दाख की सांस्कृतिक धरोहर और स्थानीय समुदायों की पहचान भी खतरे में है। यदि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा नहीं मिलती, तो बाहरी हस्तक्षेप और विकास के नाम पर यहां की स्थानीय संपदाएं नष्ट हो सकती हैं।
इसके अलावा, लद्दाख के नागरिकों के लिए राज्य का दर्जा मिलना महत्वपूर्ण है ताकि उनके पास अपने क्षेत्र की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति पर अधिक नियंत्रण हो। सोनम वांगचुक और उनके सहयोगी इस मांग के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं, और उनका यह कदम लद्दाख के लिए एक बड़े परिवर्तन की उम्मीद है।
निष्कर्ष
सोनम वांगचुक का यह अनिश्चितकालीन उपवास न केवल लद्दाख के पर्यावरण और संवैधानिक अधिकारों के लिए एक संघर्ष है, बल्कि यह एक बड़ी सामाजिक और राजनीतिक चेतना का हिस्सा भी है। यह समय है कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करे और लद्दाख के निवासियों के भविष्य और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए उचित कदम उठाए। वांगचुक की यह लड़ाई न केवल लद्दाख बल्कि पूरे भारत के लिए एक प्रेरणा है, जो शांतिपूर्ण तरीकों से अपनी मांगों को रखने का एक उदाहरण प्रस्तुत करती है।