झारखंड एटीएस की कार्रवाई में बड़ा खुलासा हुआ है। आतंकी संगठन हिज्ब उत तहरीर के झारखंड मॉड्यूल से जुड़े संदिग्ध अम्मार याशर की गिरफ्तारी से इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) के पुराने नेटवर्क और उसके वर्तमान पुनर्गठन की साजिशें उजागर हो गई हैं। पूछताछ में सामने आया कि याशर, यासीन भटकल समेत भटकल ब्रदर्स के साथ मिलकर आतंकी घटनाओं की साजिशें रच चुका है और जेल से छूटने के बाद फिर से कट्टरपंथी नेटवर्क से जुड़ गया था।
यासीन भटकल का करीबी निकला याशर
झारखंड एटीएस द्वारा गिरफ्तार अम्मार याशर कोई नया नाम नहीं, बल्कि इंडियन मुजाहिदीन का पुराना खिलाड़ी है। वह आईएम के संस्थापक यासीन भटकल, रियाज भटकल और इकबाल भटकल के साथ मिलकर कई आतंकी घटनाओं की योजना बना चुका है। 2014 में उसे जोधपुर से गिरफ्तार किया गया था और उसने करीब 10 साल जेल में बिताए।
जेल से निकलकर फिर से जुड़ा जिहादी नेटवर्क से
2024 में जेल से छूटने के बाद याशर ने वासेपुर में रहना शुरू किया और वहां शबनम परवीन के संपर्क में आया, जो कि हिज्ब उत तहरीर से जुड़ी थी। शबनम ने उसे दोबारा इस्लामिक जिहाद की राह पर लाने की कोशिश की, और याशर ने हिज्ब उत तहरीर से खुद को जोड़ लिया।
डार्क नेट और डिजिटल जिहाद
पूछताछ में सामने आया कि याशर समेत सभी संदिग्ध डार्क नेट के ज़रिए देश-विदेश में हिज्ब उत तहरीर के एजेंटों से संपर्क में थे। सभी ऑनलाइन मीटिंग करते थे और आतंकी विचारधारा से प्रेरित सामग्री का आदान-प्रदान करते थे। गिरफ्तार संदिग्धों के पास से “इस्लामिक जिहाद कैसे करें”, “काफिर कौन है” और “हमला कैसे करें” जैसी कट्टरपंथी किताबें बरामद की गई हैं।
धनबाद से मिले हथियार, एक साल से सक्रिय मॉड्यूल
धनबाद के एक युवक ने संदिग्ध आयान जावेद को हथियार मुहैया कराए थे। पूछताछ में ये भी सामने आया कि यह नेटवर्क पिछले एक साल से सक्रिय था और इसकी गतिविधियाँ पूरी तरह ऑनलाइन चल रही थीं। गिरफ्तार किए गए संदिग्धों में गुलफाम हसन, आयान जावेद, शबनम परवीन और शाहजाद आलम शामिल हैं।
महिला की भूमिका भी अहम
शबनम परवीन की भूमिका इस पूरी साजिश में सबसे अहम मानी जा रही है। उसने न सिर्फ अन्य युवाओं को कट्टरपंथी विचारधारा की ओर मोड़ा, बल्कि डिजिटल माध्यमों से उन्हें संगठित किया। इसी के इनपुट पर अम्मार याशर की गिरफ्तारी संभव हुई।
डिजिटल सबूत और ATS की अगली कार्रवाई
ATS ने सभी आरोपियों के लैपटॉप, मोबाइल और अन्य डिजिटल डिवाइस जब्त किए हैं। इनमें से कई आपत्तिजनक दस्तावेज और वीडियो मिले हैं, जिन्हें डिक्रिप्ट करने का काम जारी है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में और भी गिरफ्तारियां हो सकती हैं।
निष्कर्ष:
झारखंड के वासेपुर से निकली यह कहानी सिर्फ एक गिरफ्तारी की नहीं, बल्कि उस खतरनाक आतंकी नेटवर्क की है जो स्लीपर सेल की तर्ज पर डिजिटल जिहाद को हवा दे रहा है। अम्मार याशर की गिरफ्तारी से साफ है कि इंडियन मुजाहिदीन और हिज्ब उत तहरीर जैसे संगठनों की भारत में मौजूदगी खत्म नहीं हुई है, बल्कि वे नए रूप में फिर सक्रिय हो रहे हैं। इस मामले में झारखंड ATS की सक्रियता ने एक बड़ी साजिश को वक्त रहते रोकने में सफलता पाई है।