रांची, झारखंड: राज्य में हुए बहुचर्चित शराब घोटाले की जांच के सिलसिले में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) ने मंगलवार को 1999 बैच के वरिष्ठ IAS अधिकारी विनय कुमार चौबे को गिरफ्तार कर लिया। चौबे पर आरोप है कि उन्होंने आबकारी विभाग के सचिव पद पर रहते हुए शराब नीति में सुनियोजित तरीके से अनियमितताएं कीं, जिससे राज्य सरकार को करोड़ों रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ।
कैसे हुई गिरफ्तारी?
ACB की विशेष टीम मंगलवार सुबह चौबे के सरकारी आवास पर पहुंची। टीम ने पहले उन्हें नोटिस देते हुए पूछताछ के लिए एजेंसी के मुख्यालय बुलाया। वहां कई घंटों तक चली लंबी पूछताछ के बाद चौबे को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद उन्हें विशेष न्यायालय में पेश किया गया, जहां अदालत ने उन्हें 3 जून 2025 तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया। फिलहाल उन्हें होटवार स्थित बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार में रखा गया है।
क्या हैं आरोप?
ACB की जांच में चौबे पर निम्नलिखित गंभीर आरोप सामने आए हैं:
- नई आबकारी नीति बनाने में गड़बड़ी: आरोप है कि चौबे ने छत्तीसगढ़ के एक प्रभावशाली शराब सिंडिकेट के साथ मिलकर झारखंड में नई शराब नीति तैयार करवाई, जिससे निजी कंपनियों को अनुचित लाभ मिला।
- राज्य को वित्तीय नुकसान: नीति में बदलाव के चलते सरकारी राजस्व को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ। सरकार को मिलने वाला लाइसेंस शुल्क और कर राजस्व निर्धारित मापदंडों से कम हो गया।
- नीति निर्माण में पक्षपात: आरोप है कि चौबे ने कुछ विशेष कंपनियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से नीतिगत स्तर पर नियमों में ढील दी।
पूरे घोटाले की पृष्ठभूमि
झारखंड में शराब बिक्री से जुड़ी नई नीति 2021-22 में लागू की गई थी। इसमें प्राइवेट कंपनियों को वितरण और खुदरा बिक्री का जिम्मा सौंपा गया। इसी नीति को लेकर आरोप लगे कि इसका खाका कुछ बाहरी कारोबारियों के हित में तैयार किया गया, जो छत्तीसगढ़ में पहले से शराब व्यापार में सक्रिय थे।
इस मामले में ACB ने संयुक्त आबकारी आयुक्त गजेंद्र सिंह से भी कई बार पूछताछ की है। दोनों अधिकारियों के निर्णयों और दस्तावेजी प्रमाणों की जांच के बाद भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि नीति में घोटाला हुआ है।
ED भी कर चुका है कार्रवाई
यह मामला केवल राज्य स्तर तक सीमित नहीं रहा। पिछले साल अक्टूबर 2024 में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने भी इस शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग पहलुओं की जांच करते हुए चौबे और गजेंद्र सिंह के विभिन्न ठिकानों पर छापेमारी की थी। ईडी को भी इस दौरान कई संदिग्ध दस्तावेज और डिजिटल सबूत मिले थे।
FIR दर्ज करने के लिए ली गई थी सरकार से अनुमति
सरकारी सेवा में कार्यरत वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले राज्य सरकार की अनुमति लेना जरूरी होता है। इस प्रक्रिया के तहत झारखंड सरकार ने ACB को विनय कुमार चौबे के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मंजूरी दी थी। इसके बाद एजेंसी ने जांच को आगे बढ़ाया और साक्ष्य इकट्ठा करने के बाद गिरफ्तारी की।
क्या कहते हैं जानकार?
राज्य के प्रशासनिक हलकों में इस गिरफ्तारी को अभूतपूर्व माना जा रहा है। झारखंड में किसी कार्यरत वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की इस तरह की गिरफ्तारी एक बड़ा संकेत है कि राज्य सरकार और जांच एजेंसियां उच्च स्तर पर भी जवाबदेही तय करने को लेकर गंभीर हैं।
आगे क्या?
ACB अब इस मामले में चौबे और अन्य अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल करने की तैयारी में है। जांच एजेंसी ने संकेत दिया है कि शराब नीति में शामिल अन्य जिम्मेदार अधिकारियों और निजी कंपनियों की भी भूमिका खंगाली जा रही है। आने वाले दिनों में और गिरफ्तारियां संभव हैं।
निष्कर्ष:
IAS विनय कुमार चौबे की गिरफ्तारी ने झारखंड में प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। जिस स्तर पर नीति बनाकर उसका दुरुपयोग किया गया, वह राज्य की वित्तीय और संस्थागत संरचना को झकझोरने वाला है। इस मामले की तह तक पहुंचना और दोषियों पर कार्रवाई करना अब जांच एजेंसियों की बड़ी चुनौती होगी।