The Mediawala Express | रांची/साहेबगंज

झारखंड की सियासत में एक बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और वरिष्ठ आदिवासी नेता ताला मरांडी ने शुक्रवार को झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की सदस्यता ग्रहण कर ली। यह सियासी घटनाक्रम 44 साल बाद उनकी ‘घर वापसी’ के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि मरांडी ने अपना राजनीतिक सफर झामुमो से ही शुरू किया था।

भोगनाडीह से ‘घर वापसी’ की ऐतिहासिक घोषणा

ताला मरांडी ने भोगनाडीह में आयोजित एक विशाल जनसभा में मुख्यमंत्री और झामुमो कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन की उपस्थिति में झामुमो की सदस्यता ग्रहण की। इस दौरान झामुमो के केंद्रीय सचिव पंकज मिश्रा, विधायक धनंजय सोरेन, हेमलाल मुर्मू, कल्पना सोरेन मुर्मू, मोहम्मद ताजुद्दीन सहित कई बड़े नेता मौजूद रहे। कार्यक्रम को झारखंड की आदिवासी अस्मिता और राजनीतिक समीकरणों के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

भाजपा को त्यागने से पहले दिया भावुक पत्र

ताला मरांडी ने झामुमो में शामिल होने से पहले भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को एक पत्र लिखकर पार्टी की प्राथमिक सदस्यता और सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। अपने पत्र में उन्होंने लिखा:

“मैं भाजपा का समर्पित कार्यकर्ता रहा हूं और पार्टी द्वारा मिले अवसरों के लिए आभारी हूं। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों, वैचारिक मतभेद और व्यक्तिगत कारणों से मैंने यह कठिन निर्णय लिया है।”

राजनीतिक करियर की शुरुआत और उतार-चढ़ाव

  • 1980 के दशक में ताला मरांडी ने झामुमो के कार्यकर्ता के रूप में राजनीति में प्रवेश किया।
  • बाद में कांग्रेस में शामिल होकर 1995 और 2000 में बोरियो सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों बार हार का सामना करना पड़ा।
  • 2005 में भाजपा से विधायक बने, और 2014 में एक बार फिर लोबिन हेम्ब्रम को हराकर बोरियो सीट पर कब्जा जमाया।
  • 2016 में उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन कुछ महीनों बाद उन्हें पद छोड़ना पड़ा।
  • 2019 में भाजपा छोड़कर झामुमो में जाने की घोषणा की, पर जल्द ही आजसू पार्टी से जुड़कर चुनाव लड़ा—हालांकि बोरियो सीट से हार गए।

2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा से राजमहल सीट पर उम्मीदवार

हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव 2024 में ताला मरांडी को भाजपा ने राजमहल लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन वे झामुमो के विजय हांसदा से 1.5 लाख से अधिक वोटों के अंतर से पराजित हो गए। यह हार उनके भाजपा करियर के अंत की भूमिका साबित हुई।

झामुमो में वापसी के सियासी मायने

झारखंड की राजनीति में ताला मरांडी का कद हमेशा अहम रहा है, खासकर संजय–साहेबगंज–बोरियो बेल्ट में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। ऐसे में झामुमो में उनकी वापसी से न सिर्फ भाजपा को झटका लगा है, बल्कि यह झामुमो के लिए आदिवासी बहुल इलाकों में मजबूती का संकेत है।

निष्कर्ष

ताला मरांडी की झामुमो में वापसी केवल एक दल-परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह झारखंड की राजनीति में नए समीकरणों की शुरुआत है। एक लंबे अनुभव और जनाधार वाले नेता के रूप में वे झामुमो को आगामी विधानसभा चुनावों में बड़ी बढ़त दिला सकते हैं।

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