झारखंड की बहुचर्चित प्रथम सिविल सेवा भर्ती घोटाले में सीबीआई की विशेष अदालत ने 47 अधिकारियों सहित 74 आरोपियों को समन जारी कर कोर्ट में उपस्थित होने के निर्देश दिए हैं। 16 जनवरी को अदालत ने सीबीआई द्वारा दाखिल चार्जशीट का संज्ञान लेते हुए संबंधित व्यक्तियों को व्यक्तिगत या वकील के माध्यम से अपना पक्ष रखने का आदेश दिया।
जांच में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य
अभिलेखों की जांच के दौरान अदालत के सामने यह तथ्य आया कि अंतिम रूप से चयनित 64 अभ्यर्थियों में से 49 ऐसे थे जिन्हें प्रारंभिक परीक्षा (पीटी) में भी सफल नहीं माना जाना चाहिए था। सीबीआई की चार्जशीट के अनुसार, झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) ने अपने ही नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए चयन प्रक्रिया के हर चरण में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं कीं।
घोटाले का इतिहास
जेपीएससी ने वर्ष 2002 में अपनी पहली संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा आयोजित की थी। इसके तहत 65 डिप्टी कलेक्टरों की नियुक्ति का प्रावधान था। लेकिन जांच के दौरान यह खुलासा हुआ कि प्रारंभिक परीक्षा में अनियमित रूप से 9,488 उम्मीदवारों को सफल घोषित किया गया, जबकि नियमानुसार केवल 665 उम्मीदवारों को ही पास किया जाना चाहिए था।
मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार में भी गड़बड़ी
मुख्य परीक्षा में 196 उम्मीदवारों को सफल घोषित करने का मानदंड था, लेकिन नियमों का उल्लंघन कर 246 अभ्यर्थियों को पास किया गया। साक्षात्कार प्रक्रिया में भी बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों को बुलाकर, चयन में हेरफेर किया गया।
उत्तर पुस्तिकाओं की हेराफेरी
चार्जशीट में यह भी आरोप लगाया गया है कि उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन प्रक्रियाओं का पालन किए बिना किया गया। उत्तर पुस्तिकाओं पर कटिंग और ओवरराइटिंग की गई। परीक्षकों को मूल्यांकन के लिए उत्तर पुस्तिकाएं निजी वाहनों से भेजी गईं और पावती तक नहीं ली गई।
सीबीआई की चार्जशीट और कोर्ट का आदेश
सीबीआई ने इस मामले में 4 मई 2024 को तत्कालीन जेपीएससी अध्यक्ष डॉ. दिलीप प्रसाद समेत अन्य अधिकारियों और अभ्यर्थियों को आरोपी बनाते हुए चार्जशीट दाखिल की थी। अदालत ने इन सभी आरोपियों को समन जारी कर 74 नामित व्यक्तियों को अदालत में पेश होने का निर्देश दिया है।
समाज में असर और प्रश्नचिह्न
इस मामले ने झारखंड की प्रशासनिक प्रणाली और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। राज्य के विभिन्न पदों पर कार्यरत अधिकारियों की भूमिका और उनकी योग्यता को लेकर भी संदेह उत्पन्न हुआ है। इस घोटाले के उजागर होने के बाद झारखंड की भर्ती प्रक्रिया पर जनता का भरोसा डगमगा गया है।
आगे की राह
अदालत में इन आरोपियों की पेशी के बाद इस मामले की तस्वीर और साफ होगी। यह घोटाला न केवल झारखंड प्रशासनिक व्यवस्था के इतिहास में एक काला अध्याय है, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं ने राज्य के भविष्य के अधिकारियों के चयन को प्रभावित किया।
निष्कर्ष:
इस घोटाले की सजा और निष्पक्ष जांच न केवल झारखंड के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक उदाहरण बन सकती है। न्यायालय और सीबीआई की अगली कार्रवाई पर सबकी नजरें टिकी हैं।