रांची: झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की एक गलती को लेकर झारखंड हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए आयोग पर एक लाख रुपये का हर्जाना लगाया है। यह मामला वर्ष 2018 में निकाली गई नागपुरी भाषा में एसटी बैकलॉग के तहत असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती से जुड़ा है, जिसमें आयोग की प्रक्रिया पर अदालत ने गंभीर सवाल उठाए हैं।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने जेपीएससी की उस अपील याचिका को खारिज कर दिया जिसमें आयोग ने एकलपीठ के आदेश को चुनौती दी थी। एकलपीठ ने एसटी उम्मीदवार मनोज कच्छप को इंटरव्यू में शामिल कराने का निर्देश दिया था, जिसे आयोग ने पहले नजरअंदाज कर दिया था।
क्या है पूरा मामला?
जुलाई 2018 में जेपीएससी ने नागपुरी विषय में एसटी कोटे के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर के चार बैकलॉग पदों पर नियुक्ति हेतु विज्ञापन जारी किया। चयन प्रक्रिया के तहत दस्तावेज़ों की जांच में मनोज कच्छप को 85 में से 72.10 अंक प्राप्त हुए, लेकिन इंटरव्यू के लिए जारी सूची में उनका नाम नहीं था। इस पर उन्होंने न्यायालय की शरण ली।
एकलपीठ के हस्तक्षेप के बाद जेपीएससी ने मनोज को इंटरव्यू में शामिल किया, और प्रक्रिया में आगे बढ़ने दिया। हालांकि, परिणाम जारी करते समय एक पद को रोके रखा गया, क्योंकि मामला अदालत में लंबित था।
कोर्ट में क्या हुआ खुलासा?
जब कोर्ट ने मनोज कच्छप के प्रदर्शन से जुड़ी जानकारी तलब की, तब जेपीएससी ने उनके प्राप्तांक सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत किए। जांच में यह स्पष्ट हुआ कि मनोज ने पूरी चयन प्रक्रिया में सर्वाधिक अंक हासिल किए थे। यानी आयोग की गलती से सबसे अधिक अंक लाने वाला उम्मीदवार पहले ही बाहर कर दिया गया था।
जेपीएससी ने अपनी सफाई में बताया कि फीस भुगतान के दौरान तकनीकी कारणों से भुगतान असफल रहा और उनकी ओर से यह माना गया कि उम्मीदवार ने फीस नहीं जमा की है। यही आधार बनाकर उनका कैंडिडेचर रद्द कर दिया गया।
हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी
कोर्ट ने कहा कि तकनीकी कारणों से किसी योग्य उम्मीदवार को बाहर करना प्रशासनिक लापरवाही का गंभीर उदाहरण है। आयोग जैसी संस्था से इस प्रकार की लापरवाही अस्वीकार्य है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला न केवल एक व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि पूरी चयन प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।
इसी के तहत झारखंड हाईकोर्ट ने जेपीएससी पर एक लाख रुपये का हर्जाना लगाते हुए आयोग की अपील याचिका को खारिज कर दिया और एकलपीठ के आदेश को बहाल रखा।
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निष्कर्ष:
यह मामला न केवल एक योग्य उम्मीदवार के न्याय की जीत है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि चयन प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और तकनीकी सावधानी बरतना कितना आवश्यक है। अदालत का यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों में सतर्कता का संदेश देगा।