रांची, 17 अप्रैल
झारखंड की सियासत में उस वक्त भूचाल आ गया जब राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हफीजुल हसन के एक कथित बयान पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने तीखी प्रतिक्रिया दी। मंत्री पर आरोप है कि उन्होंने 14 अप्रैल को एक बयान में कहा था कि “शरीयत संविधान से ऊपर है।” इस बयान के विरोध में भाजपा ने रांची में हजारों कार्यकर्ताओं के साथ जोरदार प्रदर्शन किया और मंत्री के इस्तीफे की मांग उठाई।
BJP का हल्ला बोल: ‘संविधान सर्वोपरि है’
भाजपा के वरिष्ठ नेता और झारखंड प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में पार्टी कार्यकर्ताओं ने गुरुवार को शहीद चौक से राजभवन तक मार्च निकाला। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने “भारत में रहना है तो संविधान मानना होगा”, “शरिया कानून नहीं चलेगा”, “तुष्टीकरण की राजनीति बंद करो”, और “मंत्री हफीजुल को बर्खास्त करो” जैसे नारे लगाए।
कार्यकर्ताओं के हाथों में संविधान की प्रतियां थीं, जिससे वे यह संदेश देना चाह रहे थे कि भारत केवल संविधान के मुताबिक ही चलेगा, न कि किसी धर्म विशेष के कानून से।
राजभवन तक पहुंचा मामला, राज्यपाल को सौंपा गया ज्ञापन
प्रदर्शन का समापन राजभवन पर हुआ, जहां भाजपा प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार से मुलाकात की और मंत्री हसन की बर्खास्तगी की मांग वाला ज्ञापन सौंपा। बाबूलाल मरांडी ने संवाददाताओं से कहा, “राज्य के मंत्री द्वारा संविधान की गरिमा को ठेस पहुंचाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। हमने राज्यपाल से आग्रह किया है कि वे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को निर्देश दें कि ऐसे मंत्री को तुरंत कैबिनेट से हटाया जाए।”
क्या कहा हफीजुल हसन ने?
मंत्री हसन ने अपने ऊपर लगे आरोपों का खंडन करते हुए सफाई दी है कि उनके बयान को मीडिया द्वारा तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। उनका कहना है कि “संविधान और शरीयत दोनों मेरे लिए बराबर अहमियत रखते हैं। मैंने कभी यह नहीं कहा कि शरीयत संविधान से ऊपर है।” बावजूद इसके, भाजपा इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं है और लगातार दबाव बना रही है।
BJP का आरोप: ‘हेमंत सरकार में बढ़ा तुष्टीकरण’
भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष रवींद्र राय और राज्यसभा सांसद दीपक प्रकाश ने भी मंत्री के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। रवींद्र राय ने कहा, “हेमंत सोरेन की सरकार में सांप्रदायिक सोच को बढ़ावा मिल रहा है। यह एक गंभीर संवैधानिक संकट है।” दीपक प्रकाश ने मांग की कि मुख्यमंत्री को तुरंत हस्तक्षेप कर मंत्री से इस्तीफा लेना चाहिए।
निष्कर्ष:
यह विवाद केवल एक मंत्री के बयान तक सीमित नहीं है, बल्कि झारखंड की राजनीति में ‘संविधान बनाम तुष्टीकरण’ की बहस को और तेज कर गया है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा और गरमाने की संभावना है, खासकर तब जब राज्य में राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं।