झारखंड के गिरिडीह ज़िले में हाल ही में हुए एक बड़े ऑपरेशन में सुरक्षाबलों ने एक करोड़ के इनामी नक्सली प्रयाग मांझी उर्फ विवेक को मुठभेड़ में मार गिराया। इसके साथ ही कुल आठ नक्सलियों को ढेर कर दिया गया, जिनमें 10 लाख के इनामी साहेबराम मांझी और कई अन्य सक्रिय सदस्य शामिल थे। इस कार्रवाई को पारसनाथ और झुमरा पहाड़ी क्षेत्र में माओवादी नेटवर्क को कमजोर करने के लिहाज से एक बड़ी कामयाबी माना जा रहा है।

80 के दशक में शुरू हुई नक्सली यात्रा, डर का दूसरा नाम बना प्रयाग

प्रयाग मांझी ने 1980 के दशक में नक्सल आंदोलन से जुड़कर धीरे-धीरे संगठन के रणनीतिक और सैन्य मोर्चे का नेतृत्व संभाला। संगठन के भीतर उसे विवेक दा, फुचना, नागो मांझी और करण दा जैसे नामों से जाना जाता था। वह न सिर्फ झारखंड के गिरिडीह, धनबाद और बोकारो ज़िलों में सक्रिय था, बल्कि बिहार, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल तक उसका नेटवर्क फैला हुआ था।

पारसनाथ में बढ़ रही थी माओवादी हलचल

पारसनाथ की पहाड़ियों को माओवादियों का परंपरागत गढ़ माना जाता रहा है। हालांकि पिछले वर्षों में यहां नक्सल गतिविधियों में गिरावट आई थी, लेकिन हाल के दिनों में प्रयाग मांझी के नेतृत्व में संगठन दोबारा सक्रिय होने की कोशिश कर रहा था। वर्ष 2023 में उसे पारसनाथ और झुमरा पहाड़ी क्षेत्र की कमान सौंपी गई थी, जहां वह संगठन को पुनः खड़ा करने की रणनीति पर काम कर रहा था।

एनकाउंटर में मारे गए शीर्ष माओवादी कमांडर

इस मुठभेड़ में मारे गए अन्य नक्सलियों में गंगाराम उर्फ लंगरा, महेश मांझी उर्फ मोटा, तालो दी समेत गिरिडीह जिले के कई माओवादी शामिल हैं। गंगराम खुखरा थाना क्षेत्र के चतरो गांव का निवासी था, जबकि महेश और तालो दी क्रमशः पीरटांड और निमियाघाट थाना क्षेत्र से ताल्लुक रखते थे।

जया मांझी की गिरफ्तारी और मौत: प्रयाग की रणनीति को लगा था पहला झटका

प्रयाग की पत्नी जया मांझी, जो कि संगठन के महिला मोर्चे की बड़ी नेता थी, को 16 जुलाई 2024 को धनबाद के एक निजी अस्पताल से गिरफ्तार किया गया था। वह 25 लाख की इनामी नक्सली थी और गॉल ब्लैडर कैंसर से पीड़ित थी। गिरफ्तारी के दो महीने बाद, 21 सितंबर 2024 को रांची स्थित रिम्स अस्पताल में उसकी मौत हो गई। इस घटना के बाद प्रयाग संगठनात्मक रूप से और अधिक उग्र हुआ था।

2011 की याद: जब झुमरा ऑपरेशन में पुलिस को मिली थी बड़ी कामयाबी

वर्ष 2011 में बोकारो के झुमरा पहाड़ी क्षेत्र में पुलिस द्वारा चलाए गए ऑपरेशन में तीन नक्सली मारे गए थे, जिनमें साहेबराम मांझी भी शामिल था। हालांकि वह बाद में पुनः संगठन से जुड़ गया। 2025 की इस ताज़ा मुठभेड़ ने एक बार फिर झुमरा रेंज को माओवादी गतिविधियों से मुक्त करने की दिशा में बड़ी सफलता दी है।

सुरक्षा एजेंसियों के लिए राहत, लेकिन सतर्कता अभी जरूरी

प्रयाग मांझी का मारा जाना सीपीआई (माओवादी) के लिए एक बड़ा झटका है। गिरिडीह पुलिस को उसकी तलाश वर्षों से थी और अब जब वह मारा गया है, संगठन की गतिविधियों में निश्चित तौर पर गिरावट आने की संभावना है। हालांकि सुरक्षाबलों को अभी भी झारखंड-बिहार सीमा, झुमरा और पारसनाथ क्षेत्र में पूरी सतर्कता बनाए रखनी होगी।

निष्कर्ष: गिरिडीह ऑपरेशन बना माओवादी विरोधी कार्रवाई की नई मिसाल

सुरक्षा एजेंसियों की इस बड़ी कार्रवाई ने न केवल एक करोड़ के इनामी नक्सली को ढेर किया, बल्कि पारसनाथ जैसे संवेदनशील क्षेत्र में आतंक के लंबे साए को छोटा करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में यह ऑपरेशन एक मॉडल अभियान के रूप में देखा जा रहा है, जिससे आने वाले दिनों में और ठोस कार्रवाई की उम्मीद बढ़ गई है।

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