रांची

झारखंड के शिक्षकों के लिए राहत भरी खबर है। राज्य के प्राथमिक शिक्षकों के वेतन में लंबे समय से जारी असमानता को झारखंड हाईकोर्ट ने खत्म कर दिया है। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह समान कार्य कर रहे शिक्षकों को समान वेतन देने की व्यवस्था सुनिश्चित करे। इस फैसले से लगभग 50 हजार शिक्षकों को सीधा लाभ मिलेगा।

हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संजय प्रसाद की एकल पीठ ने यह आदेश सुनाया। कोर्ट ने कहा कि वर्ष 2015 में नियुक्त शिक्षकों को जो वेतनमान दिया जा रहा है, वही वेतनमान उन शिक्षकों को भी दिया जाए जिनकी नियुक्ति वर्ष 2002-03 में हुई थी। अदालत ने राज्य सरकार के शिक्षा विभाग को आठ सप्ताह की समय सीमा देते हुए निर्देश दिया कि वह इस मामले में उचित निर्णय ले और शिक्षकों को बार-बार कोर्ट का सहारा न लेना पड़े।

वेतन विसंगति का इतिहास

यह विवाद उस समय शुरू हुआ जब वर्ष 2002-03 में जेपीएससी के माध्यम से नियुक्त शिक्षकों को ग्रेड पे 4200 दिया गया, जबकि आरटीई एक्ट के लागू होने के बाद वर्ष 2012 की नियुक्तियों में ग्रेड पे बढ़ाकर 4600 कर दिया गया। इस असमानता को लेकर कई शिक्षकों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अमृतांश वत्स ने पक्ष रखा।

अदालत का दृष्टिकोण

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि समान कार्य करने वाले कर्मचारियों को भिन्न वेतनमान देना संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है। इसलिए सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह इस भेदभाव को खत्म कर सभी शिक्षकों को समान अधिकार दे।

राजनीतिक और प्रशासनिक हलचल की संभावना

इस फैसले के बाद शिक्षा विभाग में हलचल मच सकती है। विभाग को अब व्यापक वित्तीय और प्रशासनिक पुनर्रचना करनी होगी, जिससे एक बड़े वर्ग के शिक्षकों को लाभ पहुंचेगा। इससे सरकार पर वित्तीय बोझ तो बढ़ेगा, लेकिन यह निर्णय शिक्षकों के मनोबल को भी मजबूती देगा।

निष्कर्ष:

झारखंड हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल संवैधानिक सिद्धांतों की रक्षा करता है, बल्कि शिक्षकों की वर्षों पुरानी मांग को भी न्याय दिलाता है। अब यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस आदेश को समयबद्ध रूप से लागू करे और प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाए।

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