नई दिल्ली/इस्लामाबाद | 10 मई 2025 — दक्षिण एशिया एक बार फिर उस मोड़ पर पहुंच गया जहां युद्ध की आहट साफ सुनाई दे रही थी। कश्मीर घाटी में हुए खूनी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच उपजा तनाव महज कूटनीतिक बयानबाजी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि दोनों देशों ने सैन्य स्तर पर निर्णायक कार्रवाइयों का सहारा लिया। हालिया घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया कि शांति की भाषा अब शर्तों पर आधारित होगी।

कश्मीर में हमला, चिंगारी की शुरुआत

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक तीर्थयात्रा बस पर हुए घातक आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। हमले में 28 निर्दोष नागरिक मारे गए। भारत सरकार ने इसे सुनियोजित “क्रॉस बॉर्डर टेररिज़्म” करार देते हुए सीधे तौर पर पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों को जिम्मेदार ठहराया।

‘ऑपरेशन सिंदूर’: भारत की निर्णायक कार्रवाई

जवाबी प्रतिक्रिया में भारतीय वायुसेना ने 7 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नामक मिशन के तहत पीओके और पाकिस्तान के आतंकी शिविरों पर हमला किया। सैन्य सूत्रों के अनुसार, इन हमलों में जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के शीर्ष कमांडर मारे गए। ड्रोन और प्रिसिजन मिसाइलों की मदद से भारत ने ‘क्लीन स्ट्राइक’ का दावा किया, जबकि पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि कई नागरिक भी इन हमलों में मारे गए हैं।

हवाई मोर्चे पर सीधा टकराव

9 मई को भारत और पाकिस्तान के वायुक्षेत्रों में जबर्दस्त हवाई संघर्ष हुआ, जिसमें दोनों देशों के करीब 120 से अधिक लड़ाकू विमान शामिल रहे। सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह आधुनिक समय का सबसे बड़ा ‘डॉगफाइट’ था। इस दौरान भारत का एक सुखोई-30 और पाकिस्तान का एक JF-17 विमान क्षतिग्रस्त हुआ। हालांकि दोनों पक्षों ने अपने-अपने नुकसान को कम कर आंका।

पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई: ‘ऑपरेशन बुनियाद’

10 मई की सुबह पाकिस्तान ने जवाबी हमला करते हुए ‘ऑपरेशन बुनियाद’ के तहत भारत के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया। अमृतसर, जम्मू और पठानकोट में कई धमाके हुए, जिनमें कुछ नागरिकों की भी मृत्यु हुई। भारत ने अपने मिसाइल डिफेंस सिस्टम से अधिकांश मिसाइलों को मार गिराया, लेकिन सीमावर्ती गांवों में तनाव व्याप्त हो गया।

संघर्षविराम: अंतरराष्ट्रीय दबाव में शांति की पहल

दिनभर की गोलीबारी और हमलों के बाद शाम होते-होते अमेरिका, रूस और संयुक्त राष्ट्र के दबाव में भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ (DGMO) स्तर की बातचीत हुई। 10 मई को शाम 5 बजे से संघर्षविराम लागू करने की घोषणा की गई। यह निर्णय अमेरिका की पहल पर हुआ, जिसमें राष्ट्रपति ट्रंप ने हस्तक्षेप कर दोनों देशों को बातचीत की मेज पर लाने में अहम भूमिका निभाई।

जनता और राजनीति की प्रतिक्रिया

भारत में विपक्षी दलों ने सरकार की सैन्य कार्रवाई का समर्थन किया, लेकिन कूटनीतिक प्रयासों की कमी पर सवाल उठाए। वहीं पाकिस्तान में भी इमरान खान सरकार को विपक्ष ने आंतरिक सुरक्षा की विफलता के लिए कठघरे में खड़ा किया। आम जनता, दोनों देशों में, अब युद्ध नहीं बल्कि स्थायी शांति चाहती है।

आगे की राह: क्या यह अस्थायी शांति है?

भले ही संघर्षविराम लागू हो चुका है, लेकिन दोनों देशों के बीच अविश्वास की खाई अभी भी गहरी है। 12 मई को दोनों देशों के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी एक बार फिर बातचीत करेंगे, जो यह तय करेगा कि यह संघर्षविराम अस्थायी राहत है या दीर्घकालिक समाधान की शुरुआत।

विश्लेषण:

भारत-पाकिस्तान की यह झड़प भले ही एक सीमित अवधि तक चली, लेकिन यह साफ संकेत देती है कि अगर आतंकी गतिविधियों पर लगाम नहीं लगी, तो भविष्य में हालात और भी गंभीर हो सकते हैं। आधुनिक युद्ध अब सिर्फ सैनिकों की ताकत नहीं, बल्कि कूटनीति, तकनीक और वैश्विक समर्थन से तय होंगे।

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