रांची – झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार द्वारा कैबिनेट बैठक में लिए गए एक फैसले ने शिक्षित बेरोजगारों और शिक्षा व्यवस्था दोनों को गहरी चिंता में डाल दिया है। सरकार ने ट्रेन्ड ग्रेजुएट टीचर (TGT) और पोस्ट ग्रेजुएट टीचर (PGT) के कुल 8,900 पदों को सरेंडर करने का निर्णय लिया है। इस फैसले की चौतरफा आलोचना हो रही है। पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने इसे “शिक्षित युवाओं के साथ क्रूर मजाक और शिक्षा तंत्र को कमजोर करने की साजिश” करार दिया है।

मरांडी ने ट्वीट करते हुए कहा –

“जब राज्य में शिक्षक के लाखों पद पहले से ही रिक्त हैं, तब TGT और PGT के 8,900 पदों को एक झटके में खत्म कर देना शिक्षित बेरोज़गारों के साथ अन्याय है, साथ ही प्रदेश के शिक्षा तंत्र को भी कमजोर करने का प्रयास है। यह फैसला उन हज़ारों युवाओं की उम्मीदों का अंत है, जो सालों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। सरकार अविलंब इस निर्णय को वापस ले और जल्द से जल्द खाली पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू करे।”

शिक्षा की रीढ़ पर हमला

झारखंड में पहले से ही सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है। ग्रामीण इलाकों में तो हालात और भी भयावह हैं, जहां एक ही शिक्षक कई कक्षाओं को पढ़ाने के लिए मजबूर हैं। ऐसे में 8,900 शिक्षकों के पदों को खत्म कर देना शिक्षा व्यवस्था पर सीधा प्रहार है।

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं में आक्रोश

TGT और PGT की तैयारी कर रहे हज़ारों युवाओं को इस फैसले से गहरा झटका लगा है। वे लंबे समय से परीक्षा कैलेंडर और नियुक्ति प्रक्रिया का इंतजार कर रहे थे। अब जब सरकार ने पद ही खत्म कर दिए हैं, तो उनकी सालों की मेहनत और उम्मीदें एक झटके में ध्वस्त हो गई हैं।

राजनीतिक माहौल गरमाया

हेमंत सरकार के इस फैसले के बाद राज्य की सियासत में गर्माहट बढ़ गई है। विपक्ष इसे युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ बता रहा है। भाजपा सहित अन्य विपक्षी दल अब इस मुद्दे को विधानसभा और सड़क दोनों पर उठाने की तैयारी में हैं।

क्या है सरकार की मंशा?

सरकार की ओर से इस फैसले की कोई ठोस सफाई अब तक नहीं दी गई है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि सरकार पदों की नई संरचना और नियोजन नीति के तहत बदलाव करना चाहती है। हालांकि, यह तर्क न तो युवाओं को संतुष्ट कर पा रहा है और न ही शिक्षा क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों को।

निष्कर्ष:

शिक्षा किसी भी राज्य के विकास की नींव होती है और शिक्षकों की भूमिका उसमें सबसे अहम होती है। ऐसे में यदि सरकार खुद ही शिक्षक पदों को समाप्त करना शुरू कर दे, तो यह न सिर्फ बेरोजगार युवाओं के साथ अन्याय है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य पर भी कुठाराघात है। बाबूलाल मरांडी की यह मांग पूरी तरह वाजिब है कि सरकार इस फैसले को तुरंत वापस ले और लंबित पदों की बहाली प्रक्रिया शीघ्र शुरू करे।

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