रांची।

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्यपाल के खिलाफ दायर वह याचिका मंगलवार को वापस ले ली, जो उन्होंने वर्ष 2022 में दाखिल की थी। याचिका में मुख्यतः यह आरोप लगाया गया था कि राज्यपाल ने ‘ऑफिस ऑफ प्रॉफिट’ से जुड़े चुनाव आयोग के निर्णय को न तो सार्वजनिक किया और न ही राज्य सरकार को जानकारी दी।

क्यों दायर की गई थी याचिका?

हेमंत सोरेन की यह याचिका उस समय चर्चा में आई थी, जब उन पर खनन लीज़ से जुड़े ‘ऑफिस ऑफ प्रॉफिट’ के मामले में आरोप लगे थे। मामला चुनाव आयोग के पास गया था और आयोग ने अपनी राय राज्यपाल को भेज दी थी। लेकिन राज्यपाल द्वारा उस निर्णय को लंबे समय तक सार्वजनिक नहीं किया गया। इसी को आधार बनाकर सोरेन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें पारदर्शिता की मांग की गई थी।

सुनवाई की प्रक्रिया और याचिका वापसी

याचिका पहली बार 8 अगस्त 2024 को न्यायमूर्ति राजेश कुमार की अदालत में सुनवाई के लिए प्रस्तुत हुई थी। उस समय हेमंत सोरेन की ओर से कोई अधिवक्ता उपस्थित नहीं हुआ, जिसके चलते अदालत ने याचिका में सुधार के लिए दो सप्ताह का समय दिया। दिसंबर 2024 में दोबारा सुनवाई तय हुई लेकिन इस बार भी समय की मांग की गई। अंततः अप्रैल 2025 में जब याचिका फिर से सूचीबद्ध हुई, तब हेमंत सोरेन की ओर से इसे वापस लेने का अनुरोध किया गया, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया।

याचिका वापसी के पीछे संभावित कारण

हालांकि याचिका वापसी को लेकर सोरेन या उनकी कानूनी टीम की ओर से कोई औपचारिक बयान नहीं दिया गया है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे आगामी चुनाव और रणनीतिक फैसले से जोड़कर देखा जा रहा है। यह भी संभव है कि अब मामला राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशीलता खो चुका हो या फिर अन्य कानूनी विकल्पों पर विचार किया जा रहा हो।

याचिकाओं का महत्व

गौरतलब है कि याचिका अदालत में किसी भी नागरिक द्वारा न्याय की मांग हेतु दाखिल की जा सकती है। यह व्यवस्था लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण विशेषता है, जो नागरिकों को प्रशासनिक निर्णयों या संवैधानिक प्रश्नों पर न्यायिक हस्तक्षेप का अधिकार देती है।

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