झारखंड हाईकोर्ट ने पुलिस विभाग में सब-इंस्पेक्टर (SI) से इंस्पेक्टर पद पर प्रोन्नति की प्रक्रिया में आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए अस्थायी रोक लगा दी है। अदालत ने राज्य सरकार को इस संबंध में विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
मामले का विवरण
यह मामला तब सामने आया जब याचिकाकर्ता विकास कुमार ने झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उन्होंने दलील दी कि पुलिस विभाग ने सब-इंस्पेक्टर से इंस्पेक्टर रैंक पर प्रोन्नति में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के कर्मियों को आरक्षण दिया है, जो संविधान के अनुच्छेद 16 (4) का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि झारखंड हाईकोर्ट के रघुवंश प्रसाद बनाम झारखंड सरकार मामले में दिए गए फैसले के अनुसार, झारखंड में तब तक किसी भी सरकारी विभाग में प्रोन्नति में आरक्षण नहीं दिया जा सकता, जब तक राज्य सरकार इसके लिए नया कानून नहीं बनाती।
प्रोन्नति आदेश और विवाद
पुलिस विभाग ने 20 सितंबर 2024 को सब-इंस्पेक्टर से इंस्पेक्टर पद पर प्रोन्नति के लिए आदेश जारी किया था। इस प्रक्रिया में वरीयता सूची तैयार की गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता का नाम शीर्ष पर था। लेकिन आरक्षण नीति लागू करने के कारण वरीयता सूची में नीचे रहने वाले कई कर्मियों को इंस्पेक्टर पद पर प्रोन्नति दे दी गई।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि यह प्रक्रिया उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है। उन्होंने अदालत से अपील की कि प्रोन्नति में आरक्षण दिए जाने के आदेश को रद्द किया जाए।
हाईकोर्ट का आदेश
हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए प्रोन्नति प्रक्रिया पर रोक लगा दी और राज्य सरकार से जवाब मांगा। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि जब तक सरकार अदालत को इस प्रक्रिया के पीछे के कानूनी आधार को स्पष्ट नहीं करती, तब तक प्रोन्नति प्रक्रिया पर रोक जारी रहेगी। मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद निर्धारित की गई है।
प्रोन्नति पाए अधिकारियों पर प्रभाव
इस मामले का प्रभाव पहले से प्रोन्नति पा चुके 98 इंस्पेक्टरों पर भी पड़ सकता है। यदि अदालत का निर्णय याचिकाकर्ता के पक्ष में आता है, तो इन अधिकारियों की प्रोन्नति रद्द होने की संभावना बन सकती है।
संविधान और आरक्षण का सवाल
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि संविधान के अनुसार, यदि किसी कैडर में SC-ST वर्ग के कर्मचारी पर्याप्त संख्या में हैं, तो प्रमोशन में आरक्षण देना अनिवार्य नहीं है। यह तर्क अदालत में चर्चा का मुख्य बिंदु बन गया है।
सरकार को जवाब देना अनिवार्य
अदालत ने राज्य सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा है कि प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए किन नियमों और प्रावधानों का पालन किया गया। इसके साथ ही अदालत ने सरकार को यह भी निर्देश दिया कि वह प्रोन्नति प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करे।
महत्वपूर्ण निर्णय की प्रतीक्षा
यह मामला झारखंड में आरक्षण नीति और प्रोन्नति प्रक्रिया से जुड़े संवेदनशील मुद्दों को उजागर करता है। हाईकोर्ट का अंतिम फैसला राज्य में प्रोन्नति और आरक्षण के भविष्य पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
निष्कर्ष:
हाईकोर्ट का यह आदेश झारखंड सरकार के लिए एक चुनौती है। प्रोन्नति प्रक्रिया में आरक्षण का मुद्दा लंबे समय से विवाद का विषय रहा है, और इस मामले में अदालत का निर्णय न केवल झारखंड बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी मिसाल बन सकता है।