हाल ही में झारखंड के प्रशासनिक ढांचे में बड़ा विवाद सामने आया, जब चुनाव आयोग ने रांची के जिला उपायुक्त (डीसी) मंजूनाथ भजंत्री की नियुक्ति को हाई कोर्ट के फैसले का उल्लंघन बताया। चुनाव आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिखते हुए छह दिसंबर 2021 के आदेश का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया है, साथ ही 15 दिनों के भीतर कार्रवाई की रिपोर्ट चुनाव आयोग को भेजने को कहा है। इस पूरे प्रकरण ने राज्य में संवैधानिक और प्रशासनिक मुद्दों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

चुनाव आयोग के आदेश का विवरण

यह मामला तब शुरू हुआ जब 6 दिसंबर 2021 को चुनाव आयोग ने देवघर के तत्कालीन उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्री को उनके पद से हटाने का आदेश दिया था। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया था कि बिना आयोग की अनुमति के भजंत्री को किसी भी चुनाव से संबंधित पद पर तैनात नहीं किया जा सकता। यह आदेश मधुपुर उपचुनाव के दौरान सामने आए विवादित आंकड़ों की वजह से जारी किया गया था, जिसमें भजंत्री ने वोटर टर्नआउट ऐप और प्रेस कॉन्फ्रेंस में भिन्न आंकड़े पेश किए थे। आयोग ने इस पर उनसे स्पष्टीकरण मांगा, लेकिन उनके जवाब से संतुष्ट न होने पर उन्हें हटाने का निर्णय लिया गया।

न्यायालय का हस्तक्षेप और कानूनी प्रक्रिया

मंजूनाथ भजंत्री ने चुनाव आयोग के इस आदेश के खिलाफ झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। मामले की सुनवाई सिंगल बेंच द्वारा की गई, जिसमें कोर्ट ने भजंत्री की याचिका को स्वीकार कर लिया और उन्हें राहत दी। हालांकि, इस फैसले के खिलाफ चुनाव आयोग ने हाई कोर्ट में एलपीए (लैटर पेटेंट अपील) दायर की, जिसमें कोर्ट ने चुनाव आयोग के आदेश को सही ठहराते हुए 30 सितंबर 2024 को अपना निर्णय सुनाया।

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चुनाव आयोग का आदेश राज्य सरकार के लिए बाध्यकारी है और इसका पालन न करना संविधान के मूल ढांचे पर प्रहार करने जैसा है। कोर्ट के इस निर्णय के बाद राज्य सरकार पर दबाव बढ़ गया है, क्योंकि चुनाव आयोग द्वारा दी गई समय सीमा में उन्हें इस मुद्दे पर स्पष्ट कार्रवाई करनी होगी।

राज्य सरकार की प्रतिक्रिया

हालांकि चुनाव आयोग ने 6 दिसंबर 2021 को ही भजंत्री को पद से हटाने का आदेश दिया था, लेकिन राज्य सरकार ने उस समय आयोग के आदेश का पालन नहीं किया। इसके बजाय, 23 दिसंबर 2021 को राज्य के कार्मिक विभाग की ओर से चुनाव आयोग को पत्र लिखकर कहा गया कि आचार संहिता समाप्त हो चुकी है, इसलिए इस प्रकार के आदेश का अधिकार आयोग के पास नहीं है।

इस पत्र ने आयोग और राज्य सरकार के बीच एक संवैधानिक संघर्ष की स्थिति उत्पन्न कर दी। अब जब हाई कोर्ट ने भी आयोग के पक्ष में निर्णय दिया है, राज्य सरकार को मजबूरी में आयोग के आदेश का पालन करना पड़ेगा।

चुनाव आयोग की भूमिका और संवैधानिक महत्व

इस पूरे प्रकरण ने चुनाव आयोग की संवैधानिक भूमिका को पुनः रेखांकित किया है। चुनाव आयोग को देश की चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष, स्वतंत्र और पारदर्शी बनाए रखने के लिए स्थापित किया गया है। इसके आदेशों की अवहेलना केवल कानूनी मसला नहीं है, बल्कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर भी सवाल खड़ा करता है। इस मामले में आयोग ने यह सुनिश्चित किया है कि उसकी प्रतिष्ठा और शक्ति को चुनौती नहीं दी जाए।

निष्कर्ष

रांची डीसी के पद पर मंजूनाथ भजंत्री की नियुक्ति और इसके खिलाफ चुनाव आयोग के सख्त रुख ने प्रशासनिक और संवैधानिक मसलों को केंद्र में ला दिया है। हाई कोर्ट ने भी आयोग के आदेश को सही ठहराया है, जिससे राज्य सरकार पर इस मुद्दे पर कार्रवाई करने का दबाव बढ़ गया है। आगामी दिनों में इस मामले में राज्य सरकार की कार्रवाई और चुनाव आयोग की भूमिका पर सभी की नजरें होंगी।

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