झारखंड में विधानसभा चुनाव 2024 का बिगुल बज चुका है और चुनावी हलचल जोरों पर है। सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप दे रहे हैं और उम्मीदवारों के चयन में जुटे हुए हैं। इस बीच एक बड़ी राजनीतिक चर्चा जोर पकड़ रही है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नेता और पूर्व विधायक लुईस मरांडी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) में शामिल हो सकती हैं।

लुईस मरांडी का राजनीतिक सफर

लुईस मरांडी का झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। वह तीन बार दुमका विधानसभा सीट से चुनाव लड़ चुकी हैं, जिनमें से 2014 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने झामुमो प्रमुख और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को हराकर बड़ी जीत हासिल की थी। यह जीत उनके राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। हालांकि, 2009 और 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हेमंत सोरेन से हार का सामना करना पड़ा था।

लुईस मरांडी की छवि एक सशक्त आदिवासी नेता के रूप में रही है, और भाजपा में उनकी गहरी पकड़ रही है। लेकिन अब खबरें आ रही हैं कि वे पार्टी छोड़कर झामुमो का दामन थामने की तैयारी कर रही हैं।

झारखंड मुक्ति मोर्चा से नजदीकियां

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, लुईस मरांडी हाल के दिनों में झामुमो के नेताओं के संपर्क में रही हैं। कहा जा रहा है कि वे 22 अक्टूबर को औपचारिक रूप से झामुमो में शामिल हो सकती हैं। यह घटनाक्रम भाजपा के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है, क्योंकि लुईस मरांडी पार्टी की एक प्रमुख आदिवासी चेहरा रही हैं और उनके झामुमो में शामिल होने से झारखंड की राजनीतिक स्थिति में बदलाव आ सकता है।

इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे की खींचतान

इस बीच, इंडिया गठबंधन (आईएनडीआईए) में सीट बंटवारे को लेकर बयानबाजी का दौर जारी है। राजद ने खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की है और कांग्रेस व झामुमो के साथ सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन पा रही है। ऐसे में लुईस मरांडी का झामुमो में शामिल होना गठबंधन के समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।

झामुमो में लुईस मरांडी के शामिल होने की खबरों से भाजपा की चिंताएं बढ़ गई हैं, क्योंकि यह भाजपा के लिए एक बड़ा झटका होगा। भाजपा की ओर से अभी तक इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन पार्टी के अंदर भी इस पर मंथन जारी है।

हेमंत सोरेन और लुईस मरांडी की टक्कर

लुईस मरांडी और हेमंत सोरेन के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर है। 2014 के चुनाव में लुईस मरांडी ने हेमंत सोरेन को हराकर बड़ी जीत दर्ज की थी, लेकिन 2019 के चुनाव में हेमंत सोरेन ने उनकी हार का बदला ले लिया। अब अगर लुईस मरांडी झामुमो में शामिल होती हैं, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि वे हेमंत सोरेन के नेतृत्व में काम करने को तैयार होती हैं या नहीं।

भाजपा के लिए मुश्किलें

लुईस मरांडी का झामुमो में जाना भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के लिए यह एक बड़ा झटका होगा, क्योंकि मरांडी का दुमका क्षेत्र में काफी जनाधार है। झामुमो का यह कदम आदिवासी वोट बैंक को मजबूत करने की दिशा में उठाया गया एक मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है।

अगर लुईस मरांडी झामुमो में शामिल होती हैं, तो इससे न केवल भाजपा के आदिवासी वोट बैंक पर असर पड़ेगा, बल्कि झामुमो के लिए यह एक बड़ी राजनीतिक जीत साबित हो सकती है। मरांडी की छवि एक संघर्षशील और जमीनी नेता की है, और उनके झामुमो में जाने से झारखंड की राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं।

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