रांची
झारखंड उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) की उस कार्रवाई को असंवैधानिक करार दिया है, जिसमें अनुसूचित जाति (SC) वर्ग के एक अभ्यर्थी को सामान्य श्रेणी में स्थानांतरित कर प्रारंभिक परीक्षा में असफल घोषित कर दिया गया था। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि आरक्षण एक संवैधानिक अधिकार है, और तकनीकी त्रुटि के आधार पर किसी भी अभ्यर्थी को उसके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
मामले की पृष्ठभूमि:
वर्ष 2023 में झारखंड लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की प्रारंभिक परीक्षा में दीपक कुमार नामक अभ्यर्थी ने एससी वर्ग के तहत आवेदन किया था। आवेदन फॉर्म में उसने अपनी श्रेणी स्पष्ट रूप से अनुसूचित जाति के रूप में अंकित की थी। हालांकि तकनीकी रूप से उसने फॉर्म के होरिजेंटल और वर्टिकल आरक्षण से संबंधित कॉलम को नहीं भरा।
परीक्षा परिणाम आने के बाद आयोग ने 31 जुलाई 2024 को अभ्यर्थी को ईमेल के माध्यम से सूचित किया कि चूंकि उसने आरक्षण से संबंधित कॉलम नहीं भरा, इसलिए उसे सामान्य वर्ग में माना गया है और इस वर्ग में न्यूनतम कट-ऑफ अंक प्राप्त नहीं करने के कारण उसे असफल घोषित किया गया है।
जबकि तथ्य यह है कि दीपक कुमार ने 36 अंक प्राप्त किए थे, जो कि एससी श्रेणी के कट-ऑफ (32 अंक) से अधिक थे।
अभ्यर्थी की कानूनी चुनौती:
आयोग के इस फैसले को अभ्यर्थी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी। उनकी ओर से पेश अधिवक्ता वंदना सिंह और राजेश कुमार ने दलील दी कि:
- फॉर्म में साफ तौर पर अभ्यर्थी ने अपनी जाति अनुसूचित जाति के रूप में दर्शाई थी।
- मात्र आरक्षण कॉलम खाली रह जाने से उसके मूलभूत संवैधानिक अधिकारों को नकारा नहीं जा सकता।
- अभ्यर्थी ने अपने आरक्षित वर्ग के कट-ऑफ से ज्यादा अंक प्राप्त किए हैं, अतः उसे सफल घोषित किया जाना चाहिए।
हाई कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय:
मुख्य न्यायाधीश एम.एस. रामचंद्र राव की अध्यक्षता में गठित खंडपीठ ने सुनवाई के बाद JPSC के निर्णय को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा:
- आरक्षण संविधान द्वारा प्रदत्त विशेषाधिकार है, और इस अधिकार को किसी तकनीकी चूक के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।
- आयोग ने अभ्यर्थी को उसकी मूल आरक्षित श्रेणी के बजाय अनारक्षित श्रेणी में रखकर संवैधानिक प्रावधानों की अवहेलना की है।
- यह कृत्य अभ्यर्थी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, जिसे न्यायालय स्वीकार नहीं कर सकता।
कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “किसी भी व्यक्ति को उसके संवैधानिक हक से वंचित नहीं किया जा सकता। समाज के कमजोर वर्गों को दिए गए विशेषाधिकारों को इस प्रकार दरकिनार करना असंवैधानिक और अन्यायपूर्ण है।”
अंतिम आदेश:
- झारखंड हाई कोर्ट ने आयोग द्वारा 31 जुलाई को भेजे गए ईमेल को रद्द कर दिया।
- साथ ही आयोग को निर्देश दिया गया कि अभ्यर्थी को अनुसूचित जाति श्रेणी में सफल घोषित किया जाए।
- इस आदेश के साथ न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं को आरक्षण नीति का पालन पूरी निष्ठा और संवेदनशीलता से करना चाहिए।
इस निर्णय का व्यापक महत्व:
यह फैसला न केवल संबंधित अभ्यर्थी के लिए राहतकारी है, बल्कि समाज के आरक्षित वर्गों के अधिकारों की रक्षा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप भी है। कोर्ट ने यह संकेत दिया है कि महज तकनीकी खामियों के आधार पर आरक्षण जैसे मौलिक अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती।
इस निर्णय को आरक्षण नीति की दृढ़ता, सामाजिक न्याय की पुनर्स्थापना, और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में जवाबदेही सुनिश्चित करने के रूप में देखा जा रहा है।