पटना/रांची

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सियासी समीकरणों में दरारें गहराने लगी हैं। झारखंड की सत्तारूढ़ पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने महागठबंधन से नाराजगी जाहिर करते हुए अकेले चुनाव लड़ने के संकेत दिए हैं। पार्टी का कहना है कि उसे गठबंधन में वह सम्मानजनक स्थान नहीं मिला, जिसकी वह अपेक्षा कर रही थी।

महागठबंधन की बैठकों से बाहर रखा गया झामुमो

सूत्रों के अनुसार, हाल ही में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की अध्यक्षता में महागठबंधन की तीन अहम बैठकों का आयोजन हुआ, लेकिन इनमें झामुमो को आमंत्रित नहीं किया गया। साथ ही गठबंधन द्वारा गठित 21 सदस्यीय समन्वय समिति में भी पार्टी को कोई स्थान नहीं मिला। झामुमो इस उपेक्षा को गंभीरता से लेते हुए अब अपने दम पर बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों में चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहा है।

झारखंड में निभाया गया गठबंधन धर्म, पर बिहार में उपेक्षा?

झामुमो का तर्क है कि 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में राजद महज एक सीट जीत पाई थी, बावजूद इसके मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उसे सरकार में मंत्री पद देकर गठबंधन धर्म निभाया था। झामुमो के नेताओं का कहना है कि राजद ने झारखंड में सम्मान पाया, लेकिन बिहार में वही सम्मान देने से परहेज़ कर रहा है।

15 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी

पार्टी के महासचिव विनोद कुमार पांडेय ने स्पष्ट कहा है कि अगर गठबंधन में सम्मानजनक भागीदारी नहीं मिली, तो झामुमो बिहार की कम से कम 15 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगा। इनमें चकाई, झाझा, तारापुर, कटोरिया, बांका, मनिहारी, जमालपुर, बनमनखी और धमदाहा जैसी सीमावर्ती सीटें शामिल हैं, जहां पार्टी की जमीनी पकड़ बताई जाती है।

राष्ट्रीय विस्तार की रणनीति का हिस्सा है बिहार

झामुमो ने हाल में अपने महाधिवेशन में राजनीतिक प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रीय पार्टी बनने का लक्ष्य तय किया है। इसके तहत पार्टी झारखंड से बाहर भी संगठनात्मक विस्तार में जुटी है। पहले भी झामुमो बिहार में एक विधायक, ओडिशा में छह विधायक और एक सांसद तक पहुंच बना चुका है। पार्टी अब उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी सक्रियता बढ़ा रही है।

संस्कृति और पहचान की सियासत को आधार बना रही झामुमो

पार्टी का दावा है कि झारखंड से सटे बिहार के इलाकों में आदिवासी अस्मिता, क्षेत्रीय भाषा और झारखंडी संस्कृति की गहरी जड़ें हैं। झामुमो इसी भावनात्मक जुड़ाव को राजनीतिक समर्थन में तब्दील करना चाहती है। सीमावर्ती क्षेत्रों में पार्टी के समर्थक संगठन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और सामाजिक जुड़ाव लंबे समय से सक्रिय हैं।

निष्कर्ष:

झामुमो की बढ़ती गतिविधियां और आक्रामक तेवर साफ संकेत दे रहे हैं कि पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी स्वतंत्र सियासी ताकत आजमाने को तैयार है। अगर यह रुख बरकरार रहा, तो महागठबंधन को सीमावर्ती इलाकों में चुनावी नुकसान उठाना पड़ सकता है। वहीं, झामुमो बिहार की राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाने की दिशा में निर्णायक कदम बढ़ाता दिख रहा है।

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