रांची: केंद्रीय सरना समिति, राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा, जमीन बचाओ संघर्ष समिति चामा आदिवासी महासभा और अन्य आदिवासी संगठनों के संयुक्त तत्वावधान में आज बोडेया चौक से कांके अंचल तक पदयात्रा का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शन का उद्देश्य आदिवासियों की भूमि, धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करना था। इस पदयात्रा के दौरान 22 सूत्री मांगों का ज्ञापन भी अंचलाधिकारी को सौंपा गया।
मुख्य मांगें
इस आंदोलन की प्रमुख मांगें आदिवासी समुदाय की भूमि और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा से संबंधित थीं। प्रमुख मांगे निम्नलिखित थीं:
- सीबीआई जांच की मांग: आदिवासी जमीन की लूट के मामलों में सीबीआई जांच की मांग की गई।
- अंचलाधिकारी की बर्खास्तगी: कांके अंचलाधिकारी जयकुमार राम को नौकरी से बर्खास्त करने की मांग उठाई गई।
- आदिवासी खतियान की रक्षा: खतियान की जमीन को गैर-आदिवासियों को बेचने की प्रक्रिया को तुरंत रोकने का आह्वान किया गया।
- सामाजिक और धार्मिक स्थलों की रक्षा: पहनई, मुंडारी, पुजार स्थल, सरना स्थल आदि जैसे धार्मिक स्थलों को चिन्हित कर उनकी रक्षा सुनिश्चित करने की मांग की गई।
- भुईहरी जमीन की खरीद-बिक्री पर रोक: हजारों एकड़ भुईहरी जमीन को बचाने के लिए इसे गैर-कानूनी खरीद बिक्री से रोकने की मांग की गई।
- ऑनलाइन गड़बड़ी की जांच: एनआईसी द्वारा ऑनलाइन प्रणाली में हो रही गड़बड़ियों को रोकने के लिए कठोर कदम उठाने की मांग की गई।
नेताओं के बयान
आंदोलन का नेतृत्व कर रहे पूर्व मंत्री देव कुमार धान ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आदिवासियों की जमीन की लूट उनके अस्तित्व पर हमला है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर जमीन की सुरक्षा नहीं की गई तो आदिवासी समुदाय का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष फूलचंद तिर्की ने अपने संबोधन में कहा कि आदिवासी संस्कृति और धर्म की नींव उनकी भूमि में निहित है। अगर भूमि नहीं बचेगी, तो आदिवासियों की परंपराएं और संस्कृति भी नष्ट हो जाएगी।
प्रदर्शन में भारी जनसमर्थन
इस पदयात्रा और घेराव में विभिन्न गांवों से सैकड़ों महिला और पुरुष शामिल हुए। इन गांवों में बोडेया, कांके, पिठौरिया, संग्रामपुर, पतरातू, नगड़ी आदि प्रमुख रूप से शामिल थे। सभा में उपस्थित प्रमुख नेताओं में सुरेंद्र मुंडा, निर्मल पहान, उषा खलखो, विनय उरांव जैसे नाम शामिल थे, जिन्होंने सभा को अपने विचारों से संबोधित किया।
इस पूरे आंदोलन का संचालन अमर तिर्की ने किया और इसमें विभिन्न आदिवासी संगठनों का सहयोग मिला।
निष्कर्ष
इस घेराव का उद्देश्य आदिवासियों के भूमि अधिकारों की रक्षा और प्रशासन की उदासीनता के खिलाफ आवाज उठाना था। आंदोलनकारियों की मांगें न केवल जमीन की रक्षा के लिए थीं, बल्कि आदिवासी धर्म, संस्कृति और परंपराओं की सुरक्षा के लिए भी थीं। आदिवासी समाज की इस गंभीर स्थिति को देखते हुए यह आंदोलन एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है, जिससे सरकार को आदिवासी हितों के संरक्षण के लिए कड़े कदम उठाने पर मजबूर होना पड़े।