रांची: झारखंड की राजधानी रांची में हाईटेक तरीके से अंजाम दिए गए एक बड़े भूमि घोटाले का पर्दाफाश हुआ है। आरोप है कि रांची के कांके क्षेत्र समेत अन्य रिहायशी इलाकों में एनआईसी (NIC) पोर्टल में छेड़छाड़ कर 200 एकड़ से अधिक जमीन पर अवैध कब्जा कर लिया गया। प्रारंभिक जांच में खुलासा हुआ है कि इस घोटाले को एनआईसी कर्मियों, डाटा ऑपरेटर और भू-माफियाओं की मिलीभगत से अंजाम दिया गया।
कांके इलाके में 200 एकड़ जमीन फर्जीवाड़े की जांच में
इस घोटाले की सबसे गंभीर बात यह है कि कांके क्षेत्र में आदिवासी व भुंईहरी जमीन की प्रकृति बदल कर इसे बेचने योग्य बना दिया गया। जांच एजेंसियों के अनुसार, जिन जमीनों को कानूनी तौर पर ट्रांसफर नहीं किया जा सकता था, उन्हें गैर-आदिवासी जमीन दिखाकर बेचा गया।
प्रारंभिक जांच से पता चला है कि प्रवीण जायसवाल, जो कि एक डाटा एंट्री ऑपरेटर है, ने पुलिस पूछताछ में कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं।
प्रवीण जायसवाल ने खोला राज: कैसे बदला जाता था जमीन का नेचर
प्रवीण जायसवाल ने बताया कि चामा मौजा की जमीन को शम्सुद्दीन, राहुल राज और मुनींद्र प्रकाश की मिलीभगत से फर्जी तरीके से बदला गया। आरोप है कि एनआईसी के कर्मचारी पैसे लेकर सर्वर में लॉगिन करते थे और झारभूमि पोर्टल पर दर्ज जमीन के नेचर में परिवर्तन कर देते थे।
उदाहरण के लिए, आदिवासी जमीन को गैर-आदिवासी, और गैर-मजरूआ जमीन को गैर-सरकारी जमीन के रूप में दर्ज किया जाता था।
सीओ और सीआई के कॉल लॉग्स को कॉपी-पेस्ट कर, मैनुपुलेट कर डिजिटल सिग्नेचर के बिना फर्जी दस्तावेज तैयार किए जाते थे।
अंचल कार्यालयों को लगाया गया चूना: कैसे झारभूमि पोर्टल का हुआ दुरुपयोग
एनआईसी द्वारा तैयार किए गए फर्जी नेचर चेंज नोटिफिकेशन को झारभूमि पोर्टल पर अपडेट कर दिया जाता था। अंचल के कर्मचारियों की मिलीभगत से उसे बिना जांच के अप्रूव कर दिया जाता था।
कई बार अंचल कार्यालयों को यह कहकर गुमराह किया जाता था कि पोर्टल हैक हो गया है। पुलिस जांच में सामने आया है कि कई अंचलों में सस्पीसियस रजिस्टर-2 की प्रविष्टियां ऑनलाइन जेनरेट की गई थीं।
राज्यभर में फैल सकता है घोटाले का जाल
सीआईडी और रांची पुलिस की एसआईटी इस मामले की जांच में लगी हुई है। डीजीपी अनुराग गुप्ता ने निर्देश दिया है कि पूर्व में दर्ज जमीन मामलों की पुनः जांच की जाए और तकनीकी साक्ष्य एकत्र किए जाएं।
पुलिस को शक है कि इसी तरह की हेराफेरी झारखंड के अन्य जिलों में भी की गई होगी।
क्या है आगे की कार्रवाई?
- एनआईसी कर्मियों की भूमिका की गहराई से जांच।
- सभी संदिग्ध रजिस्टर और नेचर चेंज प्रविष्टियों की फॉरेंसिक जांच।
- रांची समेत अन्य जिलों में डिजिटल रिकॉर्ड की ऑडिट।
- भू-माफिया और भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी।
निष्कर्ष:
झारखंड में सामने आया यह भूमि घोटाला यह दर्शाता है कि कैसे तकनीकी व्यवस्था की कमजोरियों का फायदा उठाकर सरकारी रिकॉर्ड से छेड़छाड़ की जा सकती है। यह मामला ना केवल रांची बल्कि पूरे राज्य के लिए एक चेतावनी है कि डिजिटल सुरक्षा और निगरानी व्यवस्था को और मजबूत करना अब जरूरी हो गया है।