रांची
झारखंड में भूमि विवादों से जूझ रहे हजारों लोगों के लिए एक बड़ी राहत की खबर आई है। राज्य सरकार ने वर्षों से चली आ रही गैर मजरूआ खास जमीन की खरीद-बिक्री पर लगी रोक को समाप्त कर दिया है। इस फैसले से न सिर्फ रैयतों को उनके अधिकार वापस मिलने का मार्ग प्रशस्त हुआ है, बल्कि भूमाफियाओं की गतिविधियों पर भी लगाम कसने की सरकारी मंशा साफ हो गई है।
पृष्ठभूमि: एक दशक पुराना आदेश, हजारों प्रभावित
2011 में कोडरमा जिले के उपायुक्त ने लगभग 34,000 एकड़ गैर मजरूआ खास जमीन पर खरीद-बिक्री, दाखिल-खारिज, रसीद निर्गत और बैंक ऋण जैसे कार्यों पर रोक लगा दी थी। यह जमीनें कभी पूर्व जमींदारों के पास थीं, जिन्हें कानूनी प्रक्रिया के तहत रैयतों ने खरीदी थी। लेकिन इस प्रतिबंध से वे सभी लोग प्रभावित हुए जो वैध रूप से जमीन के मालिक थे।
सरकार का नया कदम: नई नीति, नई उम्मीद
राज्य सरकार ने अब इस रोक को हटाते हुए एक नई नीति के संकेत दिए हैं। एक विशेष समिति का गठन कर भूमि विवादों को सुलझाने के लिए रूपरेखा तैयार की जा रही है, जिसमें गैर मजरूआ आम, खास और अन्य विवादित श्रेणियों की भी समीक्षा होगी। यह नीति भविष्य में भूमि विवादों के कानूनी समाधान के रास्ते खोलेगी।
भूमाफियाओं के खिलाफ एक्शन मोड में प्रशासन
जहां एक ओर सरकार रैयतों को राहत दे रही है, वहीं दूसरी ओर भू-माफियाओं पर शिकंजा कसने की तैयारी भी तेज हो गई है। राजधानी रांची के रातू अंचल सहित कई जिलों में गैर मजरूआ जमीनों पर चेतावनी बोर्ड लगाए जा रहे हैं। इसका उद्देश्य है खरीदारों को सूचित करना कि यह जमीन सरकारी है और इसका क्रय-विक्रय प्रतिबंधित है।
गिरिडीह में सक्रिय भूमाफिया, ग्रामीणों ने किया विरोध
गिरिडीह के धोबीडीह में भू-माफियाओं ने गैर मजरूआ जमीन पर अवैध कब्जे की कोशिश की, लेकिन स्थानीय ग्रामीणों के विरोध और प्रशासन की सतर्कता से उनका मंसूबा नाकाम हो गया। मौके पर पहुंचे अधिकारियों ने निर्माण कार्य रुकवाकर जांच पूरी होने तक कोई गतिविधि न करने का आदेश जारी किया।
मुख्यमंत्री की सख्ती: म्यूटेशन पर नजर
मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि म्यूटेशन से जुड़ी फाइलें समय पर निष्पादित हों और अनावश्यक देरी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अधिकारियों को जिम्मेदारी के साथ कार्य करने का निर्देश दिया गया है ताकि जमीन संबंधी पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
निष्कर्ष:
राज्य सरकार का यह कदम केवल जमीन की खरीद-बिक्री की आज़ादी नहीं है, यह रैयतों के वर्षों पुराने संघर्ष को मान्यता देने का फैसला भी है। इसके साथ-साथ यह भू-माफियाओं की अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाने की निर्णायक पहल भी है। झारखंड में भूमि व्यवस्था सुधार की दिशा में यह एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता