रांची
झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल राजेन्द्र आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) से जुड़े एक अहम प्रशासनिक निर्णय में राज्य सरकार ने अपने ही आदेश को वापस ले लिया है, जिसमें रिम्स निदेशक डॉ. राजकुमार को तत्काल प्रभाव से पद से हटाया गया था। सरकार ने यह फैसला झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान खुद स्वीकार करते हुए अदालत को सूचित किया कि निदेशक को हटाने की प्रक्रिया में ‘प्राकृतिक न्याय’ (Natural Justice) का पालन नहीं किया गया।
क्या है पूरा मामला?
रिम्स निदेशक डॉ. राजकुमार को 17 अप्रैल 2025 को स्वास्थ्य मंत्री और रिम्स शासी निकाय के अध्यक्ष डॉ. इरफान अंसारी द्वारा पद से हटाने का आदेश दिया गया था। इस निर्णय पर तत्काल अमल करते हुए निदेशक की जिम्मेदारियां समाप्त कर दी गईं थीं।
डॉ. राजकुमार ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी, और याचिका दाखिल करते हुए कहा कि:
- उन्हें न तो कोई कारण बताया गया
- न ही अपना पक्ष रखने का अवसर दिया गया
- जिससे यह आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है
हाईकोर्ट की दखल और सरकार का यू-टर्न
मामले की सुनवाई झारखंड हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस दीपक रोशन की अदालत में हुई। मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान राज्य के महाधिवक्ता (Advocate General) राजीव रंजन ने अदालत को सूचित किया कि:
“राज्य सरकार निदेशक को हटाने संबंधी आदेश को त्रुटिपूर्ण मानते हुए वापस लेने का निर्णय ले चुकी है।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि डॉ. राजकुमार को हटाने की प्रक्रिया में न तो पूर्व सूचना दी गई, न ही उन्हें स्पष्टीकरण का मौका मिला, इसलिए उस आदेश को सही नहीं ठहराया जा सकता।
अदालत का रुख: याचिका हुई निष्पादित
महाधिवक्ता के इस बयान के बाद अदालत ने सरकार की बात को रिकॉर्ड में लेते हुए याचिका को निष्पादित कर दिया। इसका अर्थ यह है कि डॉ. राजकुमार की याचिका अब अनावश्यक हो गई, क्योंकि राज्य सरकार ने खुद ही अपना आदेश वापस ले लिया है।
प्रशासनिक और राजनीतिक असर
इस प्रकरण का असर सिर्फ एक नियुक्ति या पद से नहीं जुड़ा है, बल्कि इससे यह भी स्पष्ट होता है कि:
- प्रक्रिया की पारदर्शिता और न्याय के सिद्धांतों का अनुपालन प्रशासनिक निर्णयों में अनिवार्य है
- सरकार अगर नियमों की अनदेखी करती है, तो न्यायपालिका हस्तक्षेप कर सकती है
- यह मामला स्वास्थ्य मंत्रालय और रिम्स प्रशासन के बीच समन्वय की कमी की ओर भी इशारा करता है
द मीडिया वाला एक्सप्रेस की विशेष टिप्पणी:
इस पूरे घटनाक्रम ने यह साबित कर दिया कि प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति और हटाने के निर्णय केवल राजनीतिक इच्छा से नहीं चल सकते। नियमों और प्रक्रियाओं का पालन करना अनिवार्य है, वरना न्यायालय की चौखट पर सरकार को झुकना ही पड़ता है। डॉ. राजकुमार की वापसी फिलहाल भले ही तकनीकी आधार पर हुई हो, लेकिन यह घटनाक्रम आने वाले समय में रिम्स के कामकाज और राज्य सरकार की निर्णय प्रक्रिया पर सवाल उठाता रहेगा।