झारखंड की राजनीति में इन दिनों रघुवर दास के प्रभाव से बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में उनकी सक्रिय वापसी के बाद राज्य की सियासत गरमा गई है। हाल ही में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन के भाजपा में शामिल होने के बाद अब झामुमो के एक और कद्दावर नेता दुलाल भुइयां के भाजपा में शामिल होने की अटकलें जोर पकड़ रही हैं।
दुलाल भुइयां: रघुवर दास के करीबी और अनुभवी नेता
दुलाल भुइयां, जो झारखंड की राजनीति में तीन बार विधायक और मंत्री रह चुके हैं, झामुमो के वरिष्ठ और अनुभवी नेता माने जाते हैं। लेकिन पार्टी में उपेक्षा और कार्यकर्ताओं के सम्मान की कमी के चलते वे असंतुष्ट हो गए हैं। उन्होंने साफ किया है कि रघुवर दास उनके पुराने राजनीतिक साथी रहे हैं और उनके साथ काम करने का अनुभव शानदार रहा है।
दुलाल ने मीडिया से बातचीत में कहा, “रघुवर दास से मेरी एक-दो बार बातचीत हो चुकी है। अब जब वे मुझे भाजपा में शामिल होने का संकेत देंगे, मैं तुरंत पार्टी का हिस्सा बन जाऊंगा।”
पारिवारिक समीकरण और भाजपा में भविष्य
दुलाल भुइयां के साथ उनके बेटे विप्लव भुइयां के भी भाजपा में शामिल होने की संभावना है। पिछले विधानसभा चुनाव में झामुमो ने विप्लव को टिकट नहीं दिया था, जिसके चलते उन्होंने जुगसलाई सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा। यह नाराजगी भुइयां परिवार की झामुमो से दूरी का मुख्य कारण बनी। अब वे भाजपा में शामिल होकर अपने राजनीतिक भविष्य को नया आयाम देना चाहते हैं।
रघुवर दास की रणनीति से भाजपा का बढ़ता प्रभाव
रघुवर दास की सक्रियता ने भाजपा को झारखंड में नई ऊर्जा दी है। चंपाई सोरेन के बाद दुलाल भुइयां जैसे बड़े नामों को भाजपा में शामिल करना उनकी रणनीतिक सफलता का प्रमाण है। झामुमो के कई और नेता भी पार्टी नेतृत्व से नाराज बताए जा रहे हैं, और भाजपा इस स्थिति का भरपूर लाभ उठाने की कोशिश कर रही है।
आगामी विधानसभा चुनाव पर असर
झारखंड में भाजपा और झामुमो के बीच खींचतान का सीधा असर आगामी विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा। दुलाल भुइयां जैसे कद्दावर नेता का भाजपा में जाना झामुमो के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। दूसरी ओर, रघुवर दास अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए भाजपा को मजबूत करने में जुटे हैं।
झारखंड की बदलती सियासी तस्वीर ने यह साफ कर दिया है कि रघुवर दास का प्रभाव सिर्फ भाजपा के भीतर ही नहीं, बल्कि विपक्षी दलों में भी महसूस किया जा रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि झामुमो इस चुनौती का कैसे सामना करता है और क्या नाराज नेता पार्टी में वापसी के लिए कोई नया रास्ता खोजते हैं।