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Home » Jharkhand: इस खबर को पढ़कर आप समझ जाएंगे कि पुलिसकर्मी आत्महत्या करने पर मजबूर क्यों होते हैं: ASI की गुहार… न्याय मिले
बिहार/झारखंड

Jharkhand: इस खबर को पढ़कर आप समझ जाएंगे कि पुलिसकर्मी आत्महत्या करने पर मजबूर क्यों होते हैं: ASI की गुहार… न्याय मिले

Priyanshu Jha By Priyanshu JhaJanuary 8, 2025Updated:January 9, 2025No Comments5 Mins Read
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सरायकेला जिले के RIT थाना में तैनात सहायक उप निरीक्षक (ASI) शुभंकर कुमार ने अपनी सालभर की कठिन परिस्थितियों को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं। शुभंकर का कहना है कि वर्ष 2024 में उन्हें एक भी दिन का आकस्मिक अवकाश (CL) या विशेष अवकाश (CPL) नहीं दिया गया। इस मामले में थाना प्रभारी को पूरी तरह दोषी ठहराते हुए शुभंकर ने आरोप लगाया कि जब भी उन्होंने छुट्टी मांगी, उन्हें पुलिस अधीक्षक (SP) के आदेश का हवाला देकर अवकाश से वंचित कर दिया गया।

शुभंकर कुमार, परिचय
शुभंकर कुमार, ग्राम-कोरका, थाना – पथरगामा, जिला-गोड्‌डा
(1) वर्ष 2003 झारखण्ड पुलिस में योगदान की तिथि
(2) वर्ष 2004-5 बुनियादी प्रशिक्षण, कपूरथला (पंजाब में)
(3) नवम्बर 2011 से फरवरी 2017 तक अध्यक्ष भारखण्ड पुलिस मेंस एसोसिएशन, पाकुड़।
(4) वर्ष 2012-13 में पी.टी.सी. प्रशिक्षण, पदमा (हजारीबाग में)
(5) वर्ष 2017 फरवरी में पाकुड़ से स्थानान्तरण – सरायकेला-खर‌सावाँ
(6) वर्ष 2018 सितम्बर में आरक्षी से सहायक अवर निरीक्षक में प्रोन्नति

चिंता और तनाव में शुभंकर

अपने पत्र में शुभंकर ने बताया कि उन्होंने अपनी शिकायत SP, कोल्हान DIG और DGP तक पहुंचाई, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई। तनाव और निराशा से गुजर रहे शुभंकर ने यह भी कहा कि अवकाश से वंचित किए जाने के कारण वे मानसिक रूप से बेहद विचलित हो गए।

अचानक आदेश: छुट्टी का आवेदन दें

7 जनवरी 2025 को शुभंकर द्वारा उच्चाधिकारियों को पत्र भेजने के कुछ ही घंटों बाद, शाम 7 बजे SDPO RIT थाना पहुंचे। उन्होंने शुभंकर को छुट्टी के लिए आवेदन देने का निर्देश दिया। हालांकि, शुभंकर ने स्पष्ट किया कि जब उन्हें छुट्टी की सख्त आवश्यकता थी, तब उन्हें नहीं दी गई। अब जब उनकी जरूरत खत्म हो चुकी है, उन्हें छुट्टी की पेशकश की जा रही है।

न्यायालय का सहारा लेने की तैयारी

इस अन्यायपूर्ण व्यवहार से परेशान शुभंकर ने न्यायालय का रुख करने का फैसला किया है। उनका कहना है कि उनकी यह लड़ाई सिर्फ उनके लिए नहीं है, बल्कि सभी पुलिसकर्मियों के लिए है, जो अक्सर ऐसे हालात का सामना करते हैं। शुभंकर ने कहा, “ऐसे मामले अक्सर देखने को मिलते हैं और तनाव में आकर कई पुलिसकर्मी आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं।”

दोषियों पर कार्रवाई और हर्जाने की मांग

शुभंकर ने मांग की है कि दोषी थाना प्रभारी के वेतन से कटौती की जाए और छुट्टी के दौरान मिलने वाली राशि उन्हें दी जाए। इसके साथ ही उन्होंने उच्चाधिकारियों से आग्रह किया है कि इस प्रकार के मामलों पर सख्त कदम उठाए जाएं ताकि भविष्य में किसी अन्य पुलिसकर्मी को इस तरह के मानसिक उत्पीड़न का शिकार न होना पड़े।

पुलिसकर्मियों की पीड़ा का प्रतीक बन चुका मामला

यह मामला एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है कि पुलिसकर्मियों को अत्यधिक कार्यभार और अवकाश से वंचित करने की व्यवस्था कब तक चलेगी। शुभंकर कुमार की इस गुहार ने पूरे पुलिस विभाग में एक बड़ी बहस को जन्म दिया है।

शुभंकर की इस लड़ाई को न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि पूरे पुलिस विभाग के हित में उठाए गए कदम के रूप में देखा जा रहा है। अब देखना होगा कि न्यायालय और पुलिस प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाते हैं।

क्या कहता है कानून और नियम?

पुलिसकर्मियों के लिए काम के दौरान अवकाश का प्रावधान न केवल उनका अधिकार है, बल्कि उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी भी है। नियमों के अनुसार, हर कर्मचारी को आकस्मिक और विशेष अवकाश का अधिकार होता है। शुभंकर का मामला इस बात का उदाहरण है कि जब अधिकारियों द्वारा इन अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है, तो इससे कर्मचारी के मानसिक स्वास्थ्य और कार्यक्षमता पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

पुलिसकर्मियों पर बढ़ते दबाव की असल तस्वीर

शुभंकर कुमार का यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की समस्या नहीं है, बल्कि यह पुलिस विभाग में व्याप्त प्रणालीगत खामियों का प्रतीक है। छुट्टियों से वंचित रहना, अत्यधिक काम का बोझ और वरिष्ठ अधिकारियों का दबाव – ये सभी कारण पुलिसकर्मियों को मानसिक तनाव की ओर धकेलते हैं। हाल के वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां तनाव के चलते पुलिसकर्मियों ने आत्महत्या तक कर ली।

पुलिस विभाग को उठाने होंगे सख्त कदम

विशेषज्ञों का मानना है कि पुलिसकर्मियों को नियमित अवकाश, परामर्श सेवाएं और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक सहायता प्रदान करना बेहद जरूरी है। यदि प्रशासन इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाता, तो ऐसे मामलों की संख्या बढ़ सकती है, जिससे पूरे विभाग की कार्यक्षमता प्रभावित होगी।

शुभंकर की लड़ाई: एक नई दिशा की उम्मीद

शुभंकर कुमार का कहना है कि उनकी लड़ाई सिर्फ अपने अधिकारों के लिए नहीं, बल्कि सभी पुलिसकर्मियों के लिए है। उनकी मांग है कि उच्चाधिकारियों को ऐसे मामलों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए और दोषियों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने अपने साथी पुलिसकर्मियों से अपील की है कि वे अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाएं और ऐसे अन्याय के खिलाफ एकजुट होकर खड़े हों।

क्या प्रशासन जागेगा?

अब यह देखना होगा कि शुभंकर कुमार को न्याय मिल पाता है या नहीं। क्या पुलिस विभाग इस मुद्दे पर कोई बड़ा कदम उठाएगा? या फिर यह मामला भी अन्य मामलों की तरह समय के साथ दब जाएगा? शुभंकर की इस लड़ाई ने एक गंभीर सवाल खड़ा किया है – आखिर पुलिसकर्मी आत्महत्या करने पर मजबूर क्यों होते हैं?

इस सवाल का जवाब और शुभंकर को न्याय मिलने की उम्मीद आने वाले दिनों में साफ हो जाएगी। लेकिन एक बात निश्चित है – यह मामला पुलिसकर्मियों के अधिकारों और उनके मानसिक स्वास्थ्य के प्रति प्रशासन की जिम्मेदारी पर एक बड़ा सवालिया निशान है।

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