पटना:
बिहार की राजनीति में फिर से हलचल मच गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल ही में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के एक प्रस्ताव पर तीखा पलटवार किया है। लालू यादव ने हाल ही में एक बयान में नीतीश कुमार को लेकर इशारा किया था कि उनके पास अन्य विकल्प भी खुले हैं। इस पर नीतीश कुमार ने कहा,
“दो बार इधर-उधर चला गया था, लेकिन अब हमेशा साथ रहूंगा।”
क्या है मामला?
लालू यादव ने हाल ही में यह संकेत दिया था कि यदि महागठबंधन सरकार में नीतीश कुमार कोई अलग राह पकड़ते हैं, तो राजद के पास विकल्प खुले हैं। हालांकि, लालू ने इसे सीधा राजनीतिक संदेश नहीं बताया, लेकिन उनके बयान ने बिहार की राजनीति में अटकलों का दौर शुरू कर दिया।
नीतीश कुमार ने इस बयान का जवाब देते हुए कहा कि उनका इरादा अब स्थिर रहने का है। उन्होंने कहा कि अतीत में कुछ परिस्थितियों के कारण उन्होंने पाला बदला था, लेकिन अब वह पूरी तरह से महागठबंधन के साथ खड़े हैं।
नीतीश-लालू की साझेदारी का इतिहास
नीतीश कुमार और लालू यादव की राजनीतिक जोड़ी ने अतीत में कई बार उतार-चढ़ाव देखे हैं।
- 2015 का चुनाव: महागठबंधन ने भाजपा को हराकर सत्ता संभाली थी।
- 2017 का विभाजन: नीतीश कुमार ने राजद से नाता तोड़कर भाजपा के साथ सरकार बना ली।
- 2022 में वापसी: नीतीश ने भाजपा से रिश्ता खत्म कर एक बार फिर महागठबंधन में लौटने का फैसला किया।
क्या है राजनीतिक संकेत?
लालू यादव के बयान और नीतीश कुमार के जवाब के बाद यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या महागठबंधन में सब कुछ ठीक है?
विश्लेषकों का मानना है कि यह बयानबाजी 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए हो रही है।
- राजद की चिंता: राजद चाहता है कि नीतीश कुमार किसी भी सूरत में भाजपा के साथ न जाएं।
- जदयू की स्थिति: जदयू भी इस गठबंधन को मजबूत रखना चाहता है, लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर तनाव हो सकता है।
क्या सरकार फिर पलटेगी?
नीतीश कुमार के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए यह सवाल हमेशा बना रहता है कि क्या वह फिर से अपनी रणनीति बदल सकते हैं। हालांकि, इस बार नीतीश ने अपने बयान से संकेत दिया है कि वह गठबंधन को स्थिर रखना चाहते हैं।
विश्लेषण:
राजनीतिक पंडित मानते हैं कि लालू यादव और नीतीश कुमार के बयानों के बावजूद, बिहार की राजनीति में स्थिरता की गारंटी नहीं दी जा सकती। सीट बंटवारे, 2024 की रणनीति, और गठबंधन के आंतरिक समीकरण अगले कुछ महीनों में स्पष्ट करेंगे कि यह जोड़ी कितनी मजबूत है।
अभी के लिए, दोनों नेताओं के बयान जनता और विपक्ष के बीच अटकलों का कारण बने हुए हैं। क्या बिहार की राजनीति में फिर कोई नया मोड़ आएगा, यह देखना दिलचस्प होगा।