रांची: झारखंड के मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन ने कल रांची महिला महाविद्यालय के साइंस ब्लॉक स्थित आदिवासी छात्रावास परिसर में आयोजित “करम पूजा महोत्सव” में हिस्सा लिया। इस मौके पर उन्होंने आदिवासी समाज की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और प्रकृति के साथ उनके गहरे संबंधों पर प्रकाश डाला। मुख्यमंत्री ने करम पर्व की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि जल, जंगल, जमीन हमारी पहचान हैं और प्रकृति से हमारा गहरा लगाव हमारे गर्व का प्रतीक है।

प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर मुख्यमंत्री का जोर

अपने संबोधन में मुख्यमंत्री ने कहा, “धरती माँ की गोद में हम पले हैं और वनों की छाया में हमने अपने जीवन को संवारा है। नदियों का संगीत हमारे जीवन का गान है और हम आदिवासी समाज के लोग इसके लिए गौरवान्वित महसूस करते हैं।” उन्होंने आदिवासी समाज के परंपरागत ज्ञान और पर्यावरण संरक्षण में उनके योगदान को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर जीवन जीता है और यह उनके जीवन की सबसे बड़ी धरोहर है।

मुख्यमंत्री ने करम पूजा की सांस्कृतिक महत्ता पर बात करते हुए इसे सामाजिक सौहार्द और प्रकृति के सम्मान का पर्व बताया। उन्होंने कहा कि करम पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह प्रकृति की पूजा, उसके संरक्षण और संतुलन बनाए रखने का भी प्रतीक है। इस पर्व के माध्यम से आदिवासी समाज ने सदियों से प्रकृति के साथ जुड़ाव बनाए रखा है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा है।

करम पूजा: प्रकृति और कृषि का पर्व

करम पूजा आदिवासी समाज का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो खासकर झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और बंगाल के आदिवासी समुदायों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व में करम देव की पूजा की जाती है, जिन्हें कृषि और हरियाली के देवता माना जाता है। करम पूजा खासकर युवा पीढ़ी को प्रेरित करने वाला पर्व है, जिसमें पेड़-पौधों और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है।

इस पर्व के दौरान करम वृक्ष की शाखा को विशेष रूप से सजाया जाता है और इसके आसपास नृत्य और गीतों के माध्यम से उत्सव मनाया जाता है। करम पूजा की पूरी प्रक्रिया एक सामूहिक आयोजन होता है, जिसमें आदिवासी समाज के लोग मिलकर प्रकृति की आराधना करते हैं और उसकी महत्ता को स्वीकारते हैं।

आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धरोहर और पहचान

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस अवसर पर आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आज के समय में जब आधुनिकता और शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है, तब आदिवासी समाज की सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखना और उसकी सुरक्षा करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, “आदिवासी समाज की पहचान उनके पारंपरिक रीति-रिवाजों, भाषा, नृत्य, संगीत और उनकी धरती से गहरे संबंधों में निहित है। हमें इसे संजोए रखना होगा ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी अपनी जड़ों से जुड़ी रह सकें।”

सरकार की पहल और विकास योजनाएँ

मुख्यमंत्री ने इस मौके पर आदिवासी समाज के विकास के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि झारखंड सरकार आदिवासी समाज की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक उन्नति के लिए निरंतर प्रयासरत है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य की सरकार जल, जंगल, जमीन के संरक्षण और आदिवासी समाज के हकों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

उन्होंने आदिवासी युवाओं को शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और कहा कि सरकार उनके लिए बेहतर अवसर उपलब्ध कराने का हरसंभव प्रयास कर रही है। साथ ही उन्होंने आदिवासी समाज की महिलाओं की भूमिका को भी सराहा और कहा कि महिलाएं समाज की नींव होती हैं, और उनके सशक्तिकरण के बिना किसी भी समाज की उन्नति संभव नहीं है।

करम पर्व की शुभकामनाएँ

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अंत में सभी को करम पर्व की शुभकामनाएँ दीं और कहा, “करम पूजा हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखती है। यह पर्व हमें प्रकृति और उसके संसाधनों का सम्मान करना सिखाता है। हमें अपने पूर्वजों द्वारा दिए गए पर्यावरण संरक्षण के संदेश को अपनाते हुए, एक ऐसा समाज बनाना है जो प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर आगे बढ़ सके।”

मुख्यमंत्री के संबोधन ने आदिवासी समाज के लोगों को गर्व से भर दिया और उन्होंने इस अवसर पर अपने सांस्कृतिक नृत्य और गीतों से महोत्सव को और भी आनंदमय बना दिया। करम पूजा महोत्सव के इस आयोजन ने प्रकृति और संस्कृति के संरक्षण की महत्ता को रेखांकित करते हुए आदिवासी समाज के गौरवशाली इतिहास और परंपराओं को सम्मानित किया।

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