मिथिला की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और पारंपरिक कलाएं आज विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान बना रही हैं। चाहे बात मधुबनी पेंटिंग की हो, लोक संगीत की हो या पारंपरिक परिधानों की, मिथिला की कला न केवल भारतीय संस्कृति की पहचान बनी हुई है, बल्कि अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराही जा रही है। इस गौरवशाली परंपरा को और अधिक सम्मान तब मिला जब केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आम बजट 2025-26 पेश करते समय मिथिला पेंटिंग वाली साड़ी पहनी।

मिथिला पेंटिंग की वैश्विक पहचान

मिथिला या मधुबनी पेंटिंग बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र की एक प्राचीन कला है, जिसकी शुरुआत हजारों साल पहले मानी जाती है। प्राकृतिक रंगों और विशिष्ट शैली में बनाई जाने वाली ये चित्रकलाएं खास तौर पर भगवान, प्रकृति, लोककथाओं और सामाजिक जीवन को दर्शाती हैं। पारंपरिक रूप से यह कला दीवारों और कागज पर बनाई जाती थी, लेकिन अब इसका विस्तार कपड़ों, घरेलू सजावट और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैशन इंडस्ट्री तक हो गया है।

बजट पेश करते समय मिथिला कला का सम्मान

निर्मला सीतारमण के बजट भाषण के दौरान मिथिला पेंटिंग प्रिंटेड साड़ी पहनने से एक बार फिर भारत की पारंपरिक हस्तकला और कपड़ा उद्योग को प्रोत्साहन मिला। यह साड़ी बिहार की महिला कलाकारों द्वारा तैयार की गई थी, जो इस कला को पीढ़ी दर पीढ़ी संजोकर रखे हुए हैं। इस कदम को स्थानीय कारीगरों और हथकरघा उद्योग के समर्थन के रूप में भी देखा जा रहा है।

मिथिला की कला और फैशन इंडस्ट्री

बीते कुछ वर्षों में मिथिला पेंटिंग ने वैश्विक फैशन बाजार में भी अपनी जगह बनाई है। अब यह सिर्फ दीवारों की शोभा नहीं बढ़ा रही, बल्कि साड़ियों, दुपट्टों, कुर्तियों, बैग, जैकेट और स्कार्फ में भी अपनी खूबसूरती बिखेर रही है। कई बड़े डिज़ाइनर अब इस पारंपरिक कला को मॉडर्न फैशन के साथ जोड़कर नए कलेक्शन तैयार कर रहे हैं।

महिलाओं के रोजगार का बढ़ा अवसर

मधुबनी पेंटिंग मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा की जाती है, और इस कला की बढ़ती मांग ने हजारों महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का अवसर दिया है। खासतौर पर दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, सुपौल और समस्तीपुर के कारीगर इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। सरकार भी विभिन्न योजनाओं के तहत इस कला को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है।

निष्कर्ष

निर्मला सीतारमण द्वारा बजट के दौरान मिथिला पेंटिंग की साड़ी पहनना भारतीय परंपरागत कला को राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर पहचान देने का एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल बिहार और मिथिलांचल के कारीगरों को प्रोत्साहन देगा, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को भी आगे बढ़ाने का काम करेगा। मिथिला की यह अनमोल धरोहर आने वाले समय में और भी बुलंदियों तक पहुंचेगी, जिससे भारत की लोककला को वैश्विक स्तर पर नई पहचान मिलेगी।

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