झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 की सियासी सरगर्मी के बीच राजनीतिक दलों में गठबंधन और सीट शेयरिंग को लेकर चर्चाएं जोर पकड़ रही हैं। एनडीए गठबंधन के बाद अब इंडिया गठबंधन ने भी सीटों के बंटवारे का फार्मूला लगभग तय कर दिया है। इस गठबंधन में शामिल प्रमुख दलों में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद), और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) हैं। हालांकि, सीटों के बंटवारे को लेकर गठबंधन के भीतर तनातनी देखने को मिल रही है।
झामुमो और कांग्रेस ने किया सीट बंटवारे का ऐलान
इंडिया गठबंधन की सीट शेयरिंग में सबसे प्रमुख भूमिका निभा रहे दल झामुमो और कांग्रेस ने अपने हिस्से की सीटों का बंटवारा कर लिया है। इस बंटवारे के तहत झामुमो और कांग्रेस ने कुल 70 सीटों पर लड़ने का ऐलान किया है। हालांकि, इस प्रक्रिया में राजद और माले को उचित स्थान नहीं मिलने से गठबंधन के भीतर मतभेद की संभावनाएं भी उभरने लगी हैं।
बिहार के नेता प्रतिपक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव समेत राजद के वरिष्ठ नेताओं ने रांची में इस मसले पर चर्चा की, लेकिन झामुमो और कांग्रेस ने 70 सीटों को आपस में बांटकर चुनावी मैदान में उतरने का निर्णय कर लिया। राजद और माले के हिस्से में कुल 11 सीटें आई हैं, जो कि दोनों दलों के लिए निराशाजनक मानी जा रही हैं।
राजद और माले की नाराजगी
राजद और माले ने अपने लिए ज्यादा सीटों की मांग की थी, लेकिन झामुमो और कांग्रेस के फैसले के बाद इन्हें सीमित सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। राजद की दावेदारी 10 से अधिक सीटों पर थी, लेकिन गठबंधन के तहत उसे पिछली बार की तरह सिर्फ 7 सीटें मिलने की संभावना है। वहीं, माले को भी सीमित सीटें मिलेंगी। राजद और माले की यह नाराजगी चुनाव में गठबंधन के प्रदर्शन पर असर डाल सकती है, क्योंकि गठबंधन के भीतर एकता और संतुलन की कमी से विपक्ष को मजबूत हथियार मिल सकता है।
कांग्रेस की स्थिति पर सवाल
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस को भी गठबंधन में उतनी सीटें नहीं मिल रही हैं जितनी वह चाहती थी। कांग्रेस ने 33 सीटों पर दावेदारी की थी, लेकिन उसे 29 या इससे भी कम सीटों पर चुनाव लड़ने का अवसर मिल सकता है। इससे कांग्रेस के भीतर भी असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, क्योंकि पार्टी अपने प्रभाव क्षेत्र में अधिक सीटों पर लड़ना चाहती थी।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर दबाव बेअसर
कांग्रेस और राजद ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर सीट बढ़ाने के लिए दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन सोरेन ने इस दबाव को स्वीकार नहीं किया। झामुमो ने कांग्रेस और राजद की सीटों में बढ़ोतरी की मांग को नजरअंदाज करते हुए अपने पक्ष में ज्यादा सीटें रखीं। इससे यह साफ होता है कि झारखंड में झामुमो की स्थिति मजबूत है और वह गठबंधन में अपनी शर्तों पर चुनाव लड़ना चाहता है।
गठबंधन के लिए चुनौतियां
झारखंड में इंडिया गठबंधन को अब कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। सीटों के बंटवारे से उत्पन्न असंतोष को दूर करना, दलों के बीच आपसी समन्वय बनाना, और चुनावी रणनीति को प्रभावी ढंग से लागू करना गठबंधन की प्राथमिकता होनी चाहिए। अगर गठबंधन के भीतर मतभेद जारी रहते हैं, तो इसका फायदा सीधे-सीधे एनडीए को मिल सकता है।
इसके अलावा, झारखंड के स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना और गठबंधन के सभी घटक दलों के समर्थकों को एकजुट करना भी एक बड़ी चुनौती होगी। गठबंधन की सफलता इसी बात पर निर्भर करेगी कि वे आपसी मतभेदों को कैसे सुलझाते हैं और एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतरते हैं।