झारखंड में ऊर्जा विभाग के खातों से 100 करोड़ रुपये की फर्जी निकासी मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। राज्य की एंटी टेररिज्म स्क्वाड (एटीएस) ने इस घोटाले में शुक्रवार को दो संदिग्धों को हिरासत में लिया। पूछताछ के दौरान उनके पास से 60 लाख रुपये की नकदी बरामद की गई है। इसके साथ ही संदिग्धों के बैंक खाते से 70 लाख रुपये की राशि को फ्रीज कर दिया गया है।

1.30 करोड़ की बरामदगी, जांच के नए आयाम

एटीएस के अनुसार, यह 1.30 करोड़ रुपये ऊर्जा विभाग से किए गए 100 करोड़ रुपये के फर्जी लेन-देन का हिस्सा है। यह मामला लगातार गहराता जा रहा है। एसआईटी ने अब तक इस घोटाले के तहत विभिन्न बैंक खातों से 47 करोड़ रुपये को फ्रीज किया है।

पूर्व में हुई कार्रवाई

इससे पहले रांची के डिबडीह इलाके में एक छापेमारी के दौरान लोकेश्वर साह के ठिकाने से 85 लाख रुपये नकदी और 15 लाख रुपये के सोने-चांदी के जेवरात जब्त किए गए थे। इस मामले में कई लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है।

गिरफ्तार आरोपी और उनकी भूमिका

अब तक जांच एजेंसियों ने जेटीडीसी के तत्कालीन लेखापाल सह कैशियर गिरिजा प्रसाद सिंह, केनरा बैंक हटिया के तत्कालीन शाखा प्रबंधक अमरजीत कुमार, इस घोटाले के मास्टरमाइंड रुद्र सिंह और लोकेश्वर साह को गिरफ्तार किया है। इन सभी पर करोड़ों रुपये के गबन की साजिश में शामिल होने का आरोप है।

घोटाले की परतें खोलती जांच

इस मामले में एटीएस और एसआईटी की संयुक्त टीम लगातार जांच कर रही है। कई बैंक खातों को फ्रीज करने के साथ ही इस घोटाले से जुड़े अन्य लोगों की तलाश जारी है। गिरफ्तार संदिग्धों से पूछताछ के जरिए घोटाले में शामिल और लोगों के नाम सामने आने की संभावना है।

कैसे हुआ घोटाला?

प्रारंभिक जांच में पता चला है कि ऊर्जा विभाग के खातों से फर्जी दस्तावेज और बैंकिंग प्रक्रियाओं का इस्तेमाल कर बड़ी रकम को दूसरे खातों में ट्रांसफर किया गया। ये राशि कई छोटे-बड़े लेन-देन के माध्यम से इकट्ठा की गई, जिससे किसी को संदेह न हो।

सरकार और प्रशासन पर सवाल

इस घोटाले ने झारखंड सरकार और प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ऊर्जा विभाग जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में इतनी बड़ी गड़बड़ी कैसे हुई, यह सोचने पर मजबूर करता है।

जनता की उम्मीदें और न्याय की मांग

झारखंड के लोगों की नजरें अब जांच एजेंसियों पर टिकी हैं। आम जनता को उम्मीद है कि इस मामले में शामिल हर व्यक्ति को सख्त से सख्त सजा मिलेगी और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाएंगे।

निष्कर्ष:

100 करोड़ रुपये की इस फर्जी निकासी ने प्रशासनिक तंत्र की खामियों को उजागर कर दिया है। जांच एजेंसियों की कार्रवाई से यह साफ है कि दोषियों को सजा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। अब देखना यह है कि इस घोटाले के अन्य साजिशकर्ताओं तक कब तक जांच पहुंच पाती है।

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