झारखंड के बहुचर्चित शराब घोटाले में अब एक और चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। राज्य सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक इकाई (एसीबी) की ताजा जांच रिपोर्ट के अनुसार, घोटाले में गिरफ्तार आईएएस अधिकारी विनय कुमार चौबे की पत्नी के बैंक खाते में हर महीने बड़ी रकम ट्रांसफर की जाती थी।
जांच में यह बात सामने आई है कि साल 2017 से 2023 के बीच हर महीने औसतन 1.50 लाख रुपये की राशि स्वप्ना संचिता (विनय चौबे की पत्नी) के खाते में डाली जाती रही। ये पैसे कथित रूप से नेक्सजेन कंपनी से जुड़े विनय कुमार सिंह के माध्यम से भेजे जाते थे। रिपोर्ट के अनुसार, कुल राशि करीब 1.25 करोड़ रुपये से अधिक हो सकती है।
ईडी की जांच के बाद बंद हुआ लेनदेन
एसीबी को इस लेनदेन का पता तब चला जब ईडी ने छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में कार्रवाई शुरू की। जैसे ही ईडी की जांच की जद में विनय चौबे और नेक्सजेन के संचालक विनय सिंह आए, वैसे ही यह संदिग्ध लेन-देन बंद हो गया। यही पैटर्न एसीबी को संदेहास्पद लगा और उसने जांच की दिशा को बदलते हुए अवैध संपत्ति और शेल कंपनियों की ओर रुख किया।
आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज
एसीबी ने अब विनय चौबे के खिलाफ एक नया मामला दर्ज किया है, जो कि आय से अधिक संपत्ति से जुड़ा है। चौबे के साथ-साथ उनकी पत्नी, साले शिपिज और चार अन्य सहयोगियों को भी आरोपी बनाया गया है।
जांच के अनुसार, इन पैसों का उपयोग अचल संपत्तियों की खरीद में किया गया, जो प्रियंका त्रिवेदी और अन्य के नाम पर दर्ज हैं। वहीं शेल कंपनियों में निवेश करने की पुष्टि भी हुई है, जिनके खाते चार्टर्ड अकाउंटेंट उपेंद्र शर्मा और एक अन्य व्यक्ति धनंजय सिंह द्वारा संचालित किए जा रहे थे।
गैरहाजिर हैं मुख्य आरोपी विनय सिंह
एसीबी ने नेक्सजेन से जुड़े विनय सिंह को दो बार नोटिस भेजकर पूछताछ के लिए बुलाया, लेकिन वह एक बार भी उपस्थित नहीं हुए। जबकि अन्य आरोपियों — शिपिज, धनंजय और उपेंद्र शर्मा — से पूछताछ हो चुकी है। एजेंसी अब इस पूरे नेटवर्क को खंगाल रही है कि आखिरकार इतनी बड़ी रकम किन स्रोतों से आ रही थी और इसका अंतिम उपयोग किस रूप में किया गया।
व्यापारिक संबंधों की जांच में भी तेजी
जांच में यह भी सामने आया है कि विनय चौबे और विनय सिंह के बीच घनिष्ठ व्यापारिक संबंध रहे हैं। एसीबी के पास ऐसे दस्तावेज भी मौजूद हैं, जो इस साझेदारी की पुष्टि करते हैं। अब यह जांच हो रही है कि चौबे की अवैध कमाई को किन-किन माध्यमों से वैध संपत्तियों में तब्दील किया गया।
निष्कर्ष:
झारखंड में शराब घोटाला अब महज एक वित्तीय अपराध नहीं रहा, यह पूरे प्रशासनिक तंत्र को झकझोर देने वाला मामला बन चुका है। एसीबी की जांच ने यह साफ कर दिया है कि घोटाले की परतें अभी और खुलनी बाकी हैं, और इसमें कई बड़े नाम और संस्थाएं शामिल हो सकते हैं।