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बिहार/झारखंड

झारखंड में पेसा कानून को लेकर गंभीर हुई सरकार, मंत्री दीपिका सिंह ने किया जमीनी सुझावों के आधार पर क्रियान्वयन का ऐलान

झारखंड सरकार बनाएगी पेसा कानून की नई नियमावली, पंचायतों और ग्रामसभाओं की राय से होगा अंतिम स्वरूप तय
Priyanshu Jha By Priyanshu JhaMay 16, 2025No Comments3 Mins Read
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ग्रामसभा को मिलेगी ताकत, नियमावली बनेगी लोगों की राय पर आधारित

रांची: झारखंड सरकार ने आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए पेसा कानून (PESA Act) को लागू करने की प्रक्रिया तेज कर दी है। पंचायती राज मंत्री दीपिका पांडेय सिंह ने गुरुवार को इस संबंध में बड़ी घोषणा करते हुए कहा कि राज्य में पेसा कानून को लोगों की राय और सुझावों के आधार पर लागू किया जाएगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ड्राफ्ट तैयार हो चुका है, लेकिन अंतिम नियमावली ग्रामसभा और नागरिकों की भागीदारी से ही तय होगी।

पेसा कानून: ऐतिहासिक संदर्भ

पेसा (Panchayats Extension to Scheduled Areas) कानून 1996 में पारित हुआ था, जिसका उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों को ग्रामसभा के माध्यम से निर्णय लेने का अधिकार देना है। हालांकि झारखंड में यह कानून अब तक पूर्ण रूप से लागू नहीं हो पाया है। लेकिन अब राज्य सरकार इसे प्रभावी रूप में लागू करने के लिए नियमावली तैयार करने के अंतिम चरण में पहुंच गई है।

विचार गोष्ठी से निकली नई दिशा

पंचायती राज विभाग द्वारा आयोजित एक पेसा विचार गोष्ठी में मंत्री दीपिका सिंह ने कहा कि यह सरकार का संकल्प है कि पेसा कानून को जन-सुनवाई, आलोचना और सुझावों के आधार पर मजबूत रूप में लागू किया जाएगा। उन्होंने कहा:

“हम ऐसी नियमावली बनाएंगे जो देश में एक मिसाल बनेगी। पारंपरिक व्यवस्थाओं और संवैधानिक मूल्यों का संतुलन रखा जाएगा ताकि यह कानून पीढ़ियों तक टिके।”

मंत्री ने यह भी जोड़ा कि इस प्रक्रिया में कोई भी सुझाव ‘कमरे के अंदर’ सीमित नहीं रहेगा। अधिकारियों की टीम ग्रामीण क्षेत्रों तक जाएगी और अंतिम व्यक्ति की राय लेकर ही अंतिम ड्राफ्ट तैयार किया जाएगा।

सरकार नहीं करेगी मूल कानून में बदलाव

मंत्री ने यह स्पष्ट किया कि राज्य सरकार 1996 के मूल पेसा कानून में कोई संशोधन नहीं करेगी। बल्कि, उसी कानून के दायरे में रहकर झारखंड की स्थानीय जरूरतों और सामाजिक ढांचे के अनुरूप नियमावली तैयार की जाएगी। उन्होंने कहा कि ग्रामसभा को वास्तविक शक्ति दी जाएगी, जिससे वह जल, जंगल और जमीन जैसे मुद्दों पर निर्णय ले सके।

ड्राफ्ट में सभी वर्गों की भूमिका

पंचायती राज मंत्री ने बताया कि अब तक तैयार नियमावली के प्रारूप में सामाजिक संगठनों, पंचायत प्रतिनिधियों, प्रशासनिक अधिकारियों और नागरिकों की भागीदारी रही है। लेकिन यह प्रारूप अंतिम नहीं है। सरकार अब सभी सुझावों को संकलित कर एक नया संशोधित प्रारूप पेश करेगी।

विकास और अधिकार में संतुलन की कोशिश

पेसा कानून का उद्देश्य केवल अधिकार देना नहीं, बल्कि स्थानीय विकास को लोगों की भागीदारी से सुनिश्चित करना भी है। सरकार चाहती है कि आदिवासी क्षेत्रों में विकास योजनाएं ग्रामसभा की स्वीकृति और निगरानी में संचालित हों। मंत्री ने कहा कि इस दिशा में नियमावली में ऐसे प्रावधान जोड़े जा रहे हैं जो पंचायतों को वास्तविक अधिकार और जवाबदेही देंगे।

मुख्यमंत्री की सीधी निगरानी

इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी लगातार नजर बनाए हुए हैं। मंत्री ने बताया कि मुख्यमंत्री स्वयं पेसा कानून की प्रगति की समीक्षा करते हैं और निर्देश भी देते हैं कि यह कानून जनभावनाओं और संवैधानिक लक्ष्यों को ध्यान में रखकर लागू हो।

निष्कर्ष

झारखंड में पेसा कानून का कार्यान्वयन अब एक औपचारिक घोषणा से आगे बढ़कर वास्तविक जन-संवाद और नीति निर्माण की दिशा में बढ़ चुका है। यदि सरकार अपने वादे के अनुसार नियमावली को पारदर्शिता और भागीदारी के साथ तैयार करती है, तो यह न सिर्फ झारखंड के लिए बल्कि देश के अन्य आदिवासी बहुल राज्यों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है।

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