रांची
झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य में दशकों से अधूरे पड़े भूमि सर्वेक्षण कार्य पर नाराजगी जताते हुए हेमंत सोरेन सरकार से साफ-साफ पूछा है कि “सर्वे कब तक पूरा होगा?”। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि अगली सुनवाई से पहले शपथपत्र के माध्यम से एक ठोस टाइमलाइन प्रस्तुत की जाए, जिसमें बताया जाए कि सभी जिलों में भूमि सर्वेक्षण कब तक पूरा किया जाएगा।
अदालत की तल्ख टिप्पणी:
मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा:
“राज्य में 1975 से सर्वे शुरू हुआ है, 50 साल हो गए लेकिन आज भी यह काम अधूरा है। यदि समय पर सर्वे नहीं होता, तो ना सरकार अपनी जमीन बचा पाएगी, ना आम जनता को उनकी भूमि का अधिकार सुरक्षित मिलेगा।”
महाधिवक्ता का पक्ष:
राज्य की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन ने बताया कि:
- राज्य के कुछ जिलों में भूमि सर्वेक्षण कार्य पूरा कर लिया गया है।
- तकनीकी कर्मचारियों और अमीनों की भारी कमी के कारण कार्य में देरी हो रही है।
- सरकार इसे लेकर गंभीर है और काम लगातार जारी है।
याचिका का आधार:
यह पूरा मामला गोकुलचंद नामक व्यक्ति द्वारा दाखिल जनहित याचिका से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने कोर्ट से मांग की कि झारखंड में 1932 के बाद 1975 में शुरू हुआ भूमि सर्वे 50 साल बीतने के बाद भी पूरा नहीं हो पाया है। इससे आम जनता को जमीन विवादों और सरकारी योजनाओं में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
अब तक कहां-कहां पूरा हुआ सर्वे?
सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक लोहरदगा और लातेहार जिलों में सर्वे कार्य पूरा कर लिया गया है। लेकिन शेष जिलों में कार्य अधूरा है।
चार्ट: झारखंड में भूमि सर्वेक्षण की स्थिति (उदाहरण के तौर पर)

क्या है भूमि सर्वेक्षण का महत्व?
1. भूमि विवादों का निपटारा: संपत्ति के मालिकाना हक को स्पष्ट करना।
2. सरकारी योजनाओं का पारदर्शी क्रियान्वयन: किसानों को मुआवजा, पीएम किसान योजना, आदि।
3. नक्शा और रिकॉर्ड अपडेट: डिजिटलीकरण की प्रक्रिया के लिए आधार तैयार करना।
4. अवैध अतिक्रमण पर रोक: सरकारी जमीन की सुरक्षा।
अगली सुनवाई:
कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 7 मई तय की है और निर्देश दिया है कि उससे पहले सरकार टाइमलाइन के साथ विस्तृत हलफनामा प्रस्तुत करे।