झारखंड में पुलिस महानिदेशक (DGP) की नियुक्ति को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की है। उन्होंने सरकार की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए इसे सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन बताया है।
किन लोगों को बनाया गया प्रतिवादी?
बाबूलाल मरांडी ने इस मामले में चार प्रमुख अधिकारियों और एक समिति के सदस्य को प्रतिवादी बनाया है। इनमें झारखंड की मुख्य सचिव अलका तिवारी, गृह विभाग की प्रधान सचिव वंदना दादेल, वर्तमान डीजीपी अनुराग गुप्ता, नॉमिनेशन कमेटी के चेयरमैन जस्टिस रत्नाकर भेंगरा और समिति के एक अन्य सदस्य व पूर्व डीजीपी नीरज सिन्हा शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना का आरोप
बाबूलाल मरांडी का कहना है कि झारखंड सरकार ने डीजीपी की नियुक्ति में प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन नहीं किया। उन्होंने अपनी याचिका में 22 सितंबर 2006, 3 जुलाई 2018 और 13 मार्च 2019 को दिए गए आदेशों का हवाला दिया, जिनके अनुसार राज्य सरकारों को यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) द्वारा भेजे गए पैनल से ही डीजीपी की नियुक्ति करनी होती है। लेकिन झारखंड सरकार ने इस नियम का पालन नहीं किया और 2 फरवरी 2025 को अनुराग गुप्ता को डीजीपी नियुक्त कर दिया।
DGP अजय कुमार सिंह को हटाने पर उठे सवाल
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि 14 फरवरी 2023 को राज्य सरकार ने यूपीएससी द्वारा भेजे गए पैनल से अजय कुमार सिंह को डीजीपी नियुक्त किया था। लेकिन 27 जुलाई 2024 को उन्हें बिना किसी विभागीय कार्रवाई के हटा दिया गया। मरांडी का आरोप है कि इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया और बिना ठोस आधार के उन्हें पद से हटाया गया। इसके बाद अंतरिम डीजीपी के रूप में अनुराग गुप्ता की नियुक्ति की गई, जो नियमों के विरुद्ध है।
राज्य सरकार ने बनाई अपनी नियमावली
झारखंड सरकार ने डीजीपी की नियुक्ति प्रक्रिया के लिए अपनी एक नियमावली बनाई है। इसके तहत नॉमिनेशन कमेटी का गठन किया गया, जिसमें राज्य के मुख्य सचिव, गृह सचिव, हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज और पूर्व डीजीपी को शामिल किया गया। इसी समिति ने अनुराग गुप्ता के नाम को स्वीकृति दी और सरकार ने उन्हें डीजीपी नियुक्त कर दिया।
बाबूलाल मरांडी का तर्क है कि यह प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ है और राज्य सरकार को डीजीपी नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित मानकों का पालन करना चाहिए था। अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर क्या निर्णय लेता है और झारखंड में पुलिस नेतृत्व को लेकर क्या नया घटनाक्रम सामने आता है।