रांची/झारखंड
झारखंड के निजी स्कूल संचालकों को झारखंड हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा हर साल संबद्धता फीस वसूलने की नीति को शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) के विपरीत बताते हुए रद्द कर दिया है। यह फैसला झारखंड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन और अन्य निजी स्कूलों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुनाया गया।
क्या कहा कोर्ट ने?
मुख्य न्यायाधीश एम.एस. रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार हर वर्ष निजी स्कूलों से संबद्धता शुल्क नहीं ले सकती। कोर्ट ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम केंद्र सरकार द्वारा निर्देशित है और राज्य सरकार इसके अंतर्गत केवल क्रियान्वयन कर सकती है, मनमर्जी से नियम नहीं बना सकती।
2019 की नियमावली पर थी आपत्ति
वर्ष 2019 में राज्य सरकार ने एक नियमावली जारी की थी, जिसमें निजी स्कूलों को हर वर्ष संबद्धता नवीकरण के लिए शुल्क जमा करना आवश्यक बनाया गया था। इस पर प्राइवेट स्कूलों ने आपत्ति जताई और कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह नियम गैरकानूनी और वित्तीय रूप से बोझिल है।
जमीन की अनिवार्यता पर भी फैसला
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस नियम को सही ठहराया है जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों के लिए न्यूनतम 60 डिसमिल और शहरी क्षेत्रों के लिए 40 डिसमिल जमीन अनिवार्य की गई है। हालांकि, अदालत ने इस नियम को लागू करने के लिए स्कूलों को 6 महीने की मोहलत दी है ताकि वे आवश्यक प्रबंध कर सकें।
शिक्षा संस्थानों को मिली बड़ी राहत
निजी स्कूल संचालकों के लिए यह फैसला न केवल आर्थिक राहत लेकर आया है, बल्कि यह उनके लिए दीर्घकालिक स्थायित्व का मार्ग भी खोलता है। कोर्ट के इस फैसले से अब राज्य सरकार मनमर्जी से नियम बनाकर स्कूलों पर वित्तीय दबाव नहीं बना सकेगी।
निष्कर्ष:
झारखंड हाईकोर्ट का यह फैसला शिक्षा क्षेत्र से जुड़े हजारों निजी संस्थानों के लिए राहत की सांस जैसा है। यह निर्णय न केवल संविधान के अंतर्गत दिए गए शिक्षा के अधिकार की व्याख्या को स्पष्ट करता है, बल्कि राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र की सीमाओं को भी चिन्हित करता है। अब देखना होगा कि राज्य सरकार इस फैसले के आलोक में नई नियमावली तैयार करती है या नहीं।